₹10 लाख का नॉमिनी एक दिन भी साथ नहीं रख सका: बुजुर्ग मीसाबंदी फिर लौटे सेवाधाम, बोले- अब यहीं रहूंगा, देहदान की जताई इच्छा
उज्जैन, 16 मई 2025 – “जिस बेटे के नाम जीवनभर की कमाई की, उसने एक दिन भी साथ नहीं रखा।”
ऐसा दर्द भरा बयान दिया मीसाबंदी बुजुर्ग शिवनारायण शर्मा ने, जिन्हें ₹10 लाख का नॉमिनी बनाने के बाद उनके परिजन उन्हें एक ही दिन में सेवाधाम आश्रम वापस छोड़ गए।
शिवनारायण शर्मा, जो आपातकाल के दौरान मीसा एक्ट में जेल जा चुके हैं, ने अपने बुढ़ापे में अपने बेटे पर भरोसा करके अपना सब कुछ सौंप दिया। परिजनों ने उन्हें घर लाकर सिर्फ एक दिन रखा और अगली सुबह उन्हें फिर से सेवाधाम आश्रम छोड़ आए। यह घटना मानव रिश्तों और सामाजिक मूल्यों पर कई सवाल खड़े करती है।
“अब यहीं रहूंगा, जीवन का अंतिम पड़ाव यहीं है”
आश्रम पहुंचकर बुजुर्ग ने भावुक होकर कहा –
“अब मैंने ठान लिया है कि यहीं सेवाधाम में जीवन बिताऊंगा। ना कोई आस है, ना कोई गिला। बस अब मैं समाज के लिए कुछ करना चाहता हूं।”
शर्मा जी ने सेवाधाम प्रबंधन को देहदान की इच्छा भी प्रकट की है, ताकि उनका शरीर मृत्यु के बाद मेडिकल छात्रों के शोध और समाज सेवा में उपयोग हो सके।
सेवाधाम बना सहारा
उज्जैन का सेवाधाम आश्रम वर्षों से असहाय, बेसहारा और बुजुर्गों के लिए एक सुरक्षित आश्रयस्थल रहा है। आश्रम के संचालक और सेवकों ने एक बार फिर इस बुजुर्ग को गले लगाया और उन्हें वही सम्मान और देखभाल दी, जिसकी उन्हें जरूरत थी।
समाज के लिए एक आईना
यह घटना न केवल पारिवारिक रिश्तों की हकीकत उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि वृद्धाश्रम या सेवाधाम जैसे संस्थान आज के समाज में कितने ज़रूरी हो गए हैं। जब खून के रिश्ते मुंह मोड़ लें, तब इंसानियत ही सच्चा सहारा बनती है।
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