ज्यादा मतदान कराने के टोटके चुनाव के दूसरे चरण में भी नाकाम, जब जीत ही रहे हैं तो फोकट मेहनत क्यों करें…?

अति आत्मविश्वास और कार्यकर्ताओं से मतदाताओं तक उत्साह की कमी ने घटाई वोटिंग

भोपाल। मतदाताओं को लुभाने के लिए और उन्हें बूथ पर पहुंचाकर ज्यादा से ज्यादा मतदान करने के सारे टोटके फिलहाल तो नाकाम नजर आ रहे हैं। न पोहे जलेबी काम आ रहे और न ही कोई और नाश्ता। घरों से मतदाताओं को निकाल -निकाल कर बूथ तक पहुंचाने वाले राजनीतिक दल के कार्यकर्ता भी कम ही हैं, जो ऐसा कर रहे हैं। लगता है वह भी बेमन से काम कर रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह सामने आई है कि भाजपा पूरी तरह आत्मविश्वास में है। वह यह मानकर चल रही है कि हम तो जीत ही रहे हैं। फिर फोकट मेहनत करने और गर्मी में तपने से क्या फायदा। भाजपा का मानना है कि सिर्फ एक छिंदवाड़ा सीट मुश्किल खड़ी कर सकती थी, कमलनाथ समर्थकों का बड़ी संख्या में भाजपा में शामिल होने के बाद अब कांग्रेस का यह गढ़ भी पार्टी अपने पाले में मान रही है। भीषण गर्मी का असर मतदान पर पड़ना स्वाभाविक था लेकिन पिछले यानी लोकसभा चुनाव-2019 की तुलना में साढ़े सात प्रतिशत कम मतदान होगा, इसकी उम्मीद राजनीतिक दलों को नहीं थी। उम्मीद टूटने की बड़ी वजह यह है कि भाजपा ने पहले चरण में कम मतदान को देखकर इस बार अपने प्रयास तेज कर दिए थे।

बूथ स्तर पर सीधे मतदाता से संपर्क

काल सेंटर के जरिये कई स्तर पर मतदाताओं से बातचीत, शक्ति केंद्र, मंडल और जिला स्तर पर किए गए प्रयासों के बाद भी मतदान न बढ़ पाना चिंताजनक है। यह स्थिति तब है, जब विधानसभा चुनाव में पांच महीने पहले 77 प्रतिशत मतदान हुआ था।
मतदान प्रतिशत में बड़ी गिरावट को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ‘अबकी बार चार सौ पार’ और ‘तीसरी बार मोदी सरकार’ जैसे नारों ने देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि भाजपा की जीत सुनिश्चित है। इससे मतदाताओं के मन में ऐसा भाव पैदा हो गया कि जब जीत ही रहे हैं तो मतदान करो या न करो, कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसकी दूसरी वजह कांग्रेस यानी विपक्ष का कमजोर होना भी है। कांग्रेस ने मतदाताओं को निराश कर दिया है।

मतदाताओं में भी उत्साह नहीं

प्रदेश में दूसरे चरण को देखा जाए तो होशंगाबाद और सतना को छोड़ किसी भी संसदीय सीट के चुनाव में नाममात्र का भी उत्साह नहीं था। अन्य सीटों पर संघर्ष की स्थिति न बन पाने से भी मतदान में कमी आई। खजुराहो संसदीय सीट पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के विरुद्ध कोई दमदार प्रत्याशी नहीं था।
वहां मतदान के प्रति रुचि में कमी आना भी स्वाभाविक था लेकिन विष्णु दत्त शर्मा के प्रयास वहां मतदान को काफी हद तक ठीक स्थिति में ले आए। इसकी वजह थी कि विष्णु दत्त शर्मा ने वाकओवर जैसे चुनाव को भी चुनाव की तरह लड़ा।

नड्डा, शाह और यादव ने रोड शो कर बढ़ाया उत्साह

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सभा और मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव का रोड शो करवाकर माहौल बनाया ताकि मतदान अधिक से अधिक हो सके। इस सीट पर परिवार पर्ची का प्रयोग भी इसमें मददगार रहा। एकतरफा चुनाव में कार्यकर्ताओं ने पूरे परिवार की मतदाता पर्ची बनाकर घर-घर भिजवाई। बार-बार उन्हें याद दिलाया, तब जाकर 56.5 प्रतिशत मतदान हुआ। हालांकि, पिछले चुनाव से यह लगभग 12 प्रतिशत कम है।