मालवा प्रांत की बड़ी बैठक में RSS ने इस बार लोकसभा चुनाव के प्रतिशत को लेकर चिंता जताई

लगातार आदिवासी अंचलों को लेकर चल रहा मंथन

इंदौर। पहले दो चरणों में कम मतदान के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी भी चिंतित हैं। सूत्रों का कहना है कि मालवा प्रांत के शीर्ष पदाधिकारियों ने पिछले दिनों बैठक कर मालवा और निमाड़ अंचल की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की। सूत्रों का कहना है कि संघ परिवार मतदान का प्रतिशत बढ़ाने के लिए इस अंचल के आदिवासी क्षेत्रों में खासतौर पर सक्रिय होगा। इस अंचल की सभी आठों विधानसभा सीटों पर 13 में को मतदान होना है।

विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मध्य प्रदेश में दो तिहाई से अधिक बहुमत प्राप्त किया लेकिन निमाड़ अंचल के आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस ने भाजपा को बराबरी की टक्कर दी। कहीं-कहीं तो वह भाजपा से आगे रही। इस अंचल में खरगोन, धार और झाबुआ सीट खास तौर पर भाजपा के लिए परेशानी का कारण है। मालवा और निमाड़ के अलावा विंध्य तथा महाकौशल में भी आदिवासी सुरक्षित सीटें आती हैं। इन सभी लोकसभा सीटों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विशेष रूप से फोकस करेगा। दरसअल, 2003 के पहले राज्य का आदिवासी वोटर पूरी तरह कांग्रेस के साथ था।
तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ घनघोर सत्ता विरोधी माहौल के बीच 2003 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई। बीजेपी की बंपर जीत में आदिवासी वोटरों का बहुत बड़ा योगदान था। तब अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर उसने जीत हासिल की थी। इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित 41 सीटों में से 31 पर जीत बीजेपी ने जीत हासिल की और दोबारा सत्ता में वापसी की।

इसके बाद परिसीमन के कारण जनजातीय आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। साल 2013 में बीजेपी ने 47 में से 31 सीटों पर फिर से जीत हासिल की और लगातार तीसरी बार राज्य की सत्ता हासिल की, लेकिन 2018 में उसे केवल 16 सीटें मिली। बहुत कोशिशों के बावजूद 2023 में पार्टी को 47 में से 25 सीटें प्राप्त हुई। दरअसल, साल 2002 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासियों को जोड़ने के लिए एक हिंदू संगम का आयोजन किया था।

इस हिंदू संगम में लगभग 2 लाख आदिवासी आए थे। यह 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए अच्छी खबर लेकर आया, जब इसने 41 में से 37 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की। एमपी के आदिवासी बहुल इलाके में 84 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 84 में से 34 सीट पर जीत हासिल की थी। वहीं, 2013 में इस इलाके में 59 सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था। 2018 में पार्टी को 25 सीटों पर नुकसान हुआ है। वहीं, जिन सीटों पर आदिवासी उम्मीदवारों की जीत और हार तय करते हैं, वहां सिर्फ बीजेपी को 16 सीटों पर ही जीत मिली है।

यह 2013 की तुलना में 18 सीट कम थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने आदिवासी अंचल में भाजपा से बराबरी का मुकाबला किया। जाहिर है भाजपा को खास तौर पर रतलाम झाबुआ धार और खरगोन लोकसभा सीट पर चिंता है। संघ परिवार इन तीनों सीटों पर खास तौर पर सक्रिय रहेगा।

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