इंदौर में नोटा के प्रचार प्रसार के चलते मोदी के बाद शाह ने जताई चिंता

 

वी. डी. शर्मा और कैलाश विजयवर्गीय से लिया फीडबैक

 

 

इंदौर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के नोट अभियान का संज्ञान लिया है। उन्होंने पिछले दिनों इंदौर के मतदान केदो पर लगे कार्यकर्ताओं से टेलीफोन के माध्यम से चर्चा की। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी इंदौर के संबंध में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से फीडबैक लिया है।
इसके बाद इंदौर लोकसभा क्षेत्र की भाजपा की पूरी इलेक्शन मशीन री सुपर एक्टिव मोड में आ गई ? है। खास तौर पर कैलाश विजयवर्गीय का खेमा इसे प्रतिष्ठा की लड़ाई मानकर मतदान बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का नोट अभियान इंदौर में कितना रंग लाता है। हालांकि कल चुनावी शोर समाप्त हो गया लेकिन 29 अप्रैल की घटना के बाद इंदौर का चुनावी माहौल पूरी तरह से ठंड पड़ गया। दरअसल, यहां न नेताओं में और न ही मतदाताओं में, चुनाव को लेकर उत्साह है।
न मुद्दे हैं और न माहौल है, न आरोप हैं, न प्रत्यारोप। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि परिणाम का संकेत सबको है। एक दल पहले ही बहुत ज्यादा प्रभावी है और दूसरा मैदान में भी नहीं है। मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति में मालवा- निमाड़ और इसमें इंदौर का विशेष राजनीतिक महत्व है। इंदौर लोकसभा सीट दशकों से मतों के लिहाज से कांग्रेस के लिए कभी उर्वरा नहीं रही। बीते नौ लोकसभा चुनाव से यहां कमल खिल रहा है, फिर भी कांग्रेस चुनौती देते हुए मैदान में नजर आती थी। मगर इस बार कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं है।
पार्टी ने अक्षय बम को टिकट दिया था, लेकिन वह भाजपा में शामिल हो गए। इस घटना ने इंदौर में तो कांग्रेस को मैदान के बाहर किया ही, देशभर में पार्टी के बिखरने की गूंज सुनाई दी। जितने दिन वह प्रत्याशी रहे, तब भी कोई राजनीतिक प्रहार उन्होंने या कांग्रेस के किसी नेता ने भाजपा प्रत्याशी पर नहीं किया। अब तो इंदौर के हालात ऐसे हैं कि कांग्रेस के निशाने पर भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी की बजाए अपने ही पूर्व नेता अक्षय बम हैं। स्थानीय मुद्दों की बात कोई नहीं कर रहा।

साफ दिख रही है कांग्रेस की हताशा —

कांग्रेस में इस कदर हताशा का भाव है कि शहर के नगर निगम में हुए बड़े घोटाले के खिलाफ भी बड़ा प्रदर्शन पार्टी नहीं कर सकी। भाजपा का विरोध तो छोड़िए, प्रत्याशी विहीन होने के बाद कांग्रेस ‘नोटा’ को प्रचारित करने का जो अभियान चला रही है, उसमें भी बड़े नेता नजर नहीं आते। दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी शंकर लालवानी भी प्रचार में बेमन से घूमते दिखे। प्रभावी वक्ता की उनकी छवि कभी नहीं रही, लेकिन रैली भी पहले सी भीड़ भी नहीं दिखती। बतौर सांसद पांच साल बिता चुके हैं, लेकिन अपने सांसद के कार्यों के लिए पीठ थपथपाने से ज्यादा वोट भाजपा पीएम मोदी के नाम पर मांग रही है। उत्साह का अभाव मतदाता और प्रत्याशी तक ही सीमित नहीं है बल्कि दोनों दलों में भी नजर आता है।
विधानसभा चुनाव में जहां पीएम मोदी ने भी इंदौर में रोड शो किया था, अन्य कई बड़े नेता इंदौर आए थे वहीं इस बार किसी बड़े नेता की सभा शहर में नहीं हुई। कांग्रेस के स्थानीय नेता दूसरे शहरों में अपने ‘गुट’ के बड़े नेता के प्रचार में जुटे हैं। हालांकि कल मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने इंदौर में रोड शो कर माहौल बनाने की कोशिश की।

लोकसभा सीट का गणित —

इंदौर लोकसभा सीट की परिधि में आठ विधानसभा आती हैं। शहर की पांच विधानसभा क्षेत्रों के अलावा देपालपुर, राऊ और सांवेर सीट इसमें शामिल हैं। कुछ माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इन सभी पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी। इनमें से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की राऊ विधानसभा सहित कुछ सीटें पहले कांग्रेस के पास थीं, जिन्हें भाजपा ने अपनी प्रभावी रणनीति से कब्जे में किया।

दूसरा बड़ा बदलाव कांग्रेस नेताओं द्वारा भाजपा में शामिल होना रहा। पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी अक्षय बम से पहले पूर्व विधायक संजय शुक्ला, पूर्व विधायक विशाल पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष स्वप्निल कोठारी सहित बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं ने भाजपा का दामन थामा।