पीले सोने की कटाई जोरों पर, 28 सितंबर को कुछ क्षेत्र में बारिश से हुआ था नुकसान

क्षेत्र में अलग-अलग उत्पादन होने से कहीं खुशी तो कहीं गम

दैनिक अवन्तिका(रुनिजा)
बारिश खुलते ही एक बार फिर अन्नदाताओं ने और मजदूरों ने खेत की और रुख कर दिया है। चारों ओर पीले सोने की कटाई जोरो से चल रही है। कहीं हार्वेस्टर तो , कहीं मजदूरों के द्वारा कटाई कार्य किया जा रहा है तो कहीं-कहीं पानी भरे खेतों तैरती सोयाबीन को भी अन्नदाता उठाकर बचाने का प्रयास कर रहे हैं। मालवा क्षेत्र का प्रसिद्ध पीले सोने के नाम से जाने वाला सोयाबीन का उत्पादन अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग हो रहा है और इसको लेकर कहीं खुशी तो कहीं गम का नजारा देखने में आ रहा है। मानसून के आगमन के साथ ही जब बारिश हुई और सोयाबीन की बुआई करने के बाद 10 ,15 दिनों तक मौसम अनुकूल होने से सोयाबीन की फसल इठला रही थी ।और लग रहा था कि इस बार सोयाबीन का बंपर उत्पादन होगा लेकिन जैसे ही फूल और फली में दाने आने का समय हुआ बारिश की लंबी खेच ने सोयाबीन को सूखने पर मजबूर कर दिया।ओर इसके बाद 16 से 18 सितंबर तक पूरे मालवा क्षेत्र में हुई तेज और धुआंधार बारिश ने चारों ओर पानी पानी कर दिया ऐसे में जो सोयाबीन पक कर तैयार हो रही थी उन खेतो में पानी भरने से वह सोयाबीन सफने व गलने लग गई। लेकिन इस बारिश ने कहीं-कहीं भयंकर फायदा भी किया है। जहाँ खेतों में पानी नहीं भरा था वहा अच्छी पैदावार होने के संकेत मिल रहे हैं। इस संदर्भ में हमने अलग-अलग क्षेत्र के अलग-अलग किसानों से चर्चा की तो सब की अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को आई गजनी खेड़ी के कृषक मोहन चौधरी से बात की गई जो हार्वेस्टर से अपनी सोयाबीन कटा रहे थे तो उन्होंने बताया कि मैं ब्लैक बोर्ड वैरायटी की सोयाबीन हुई थी जो 20 से 22 किलो बीघा बीज लगा था और यह फसल 90 दिन में पककर तैयार हो गईं और मेरे इस फसल का उत्पादन 4 से 5 क्विंटल बीघा के अनुमान से हो रहा है। खेतो में मजदूरों के साथ-साथ हार्वेस्टर भी तेजी से चल रहा है। और सोयाबीन की कटाई व्यवस्थित हो रही है। क्योंकि मेरे क्षेत्र में कई खेतों में पानी नहीं भरने से खेतों में हार्वेस्टर आदि चल रहे हैं। वहीं इसी क्षेत्र में मैंने 95 60 वैरायटी की सोयाबीन भी बौई थी जो 60 से 70 दिन में पक जाती है उसका उत्पादन भी तीन से चार क्विंटल बीघा करीब हो रहा है। वही भूरा मगरा क्षेत्र के कृषक राधेश्याम साधु से चर्चा की गई तो आपने बताया कि इधर भी सोयाबीन की कटाई चल रही है और चुकी पथरीला और ऊंचा इलाका होने से या बारिश का ज्यादा प्रभाव नहीं हुआ और तीन साढे तीन क्विंटल बीघा की सोयाबीन इधर भी उत्पादन देने की स्थिति में है। वहीं क्षेत्र के प्रगतिशील कृषक सतीश नागर से चर्चा की जो खेतो में अभी भी पानी में डूबी व गीली सोयाबीन को सुखाने जे लिए उठा रहे थे।तो उन्होंने बड़े दुखी और गम भरे माहौल में बताया कि 28 सितम्बर को हमारे काछिबडोदा क्षेत्र में ज्यादा बारिश हो गई।जिससे कटी हुई फसल के खेतों में पानी भर गया ओर सोयाबीन की कटी हुई फसल पानी में तैरने लगी है। जब सोयाबीन को पानी की सख्त आवश्यकता थी तब पानी नहीं गिरा जिसके कारण दाने छोटा रह गए और अब फसल की कटाई के समय पानी गिरने से फसल सड़ने लगी है सोयाबीन की फसल पककर तैयार हो गई और अब काटने का समय आया तो बारिश धूम मचा रही थी अब बेचारा किसान फसल नही काटे तो क्या करें।  उसको तो अपनी फसल जैसे तैसे अपनी फसल को संभालना ही है। साथ ही।नागर ने यह भी बताया कि शुरूआत में बारिश अच्छी होने से सोयाबीन की फसल के अनुकूल माहौल था लगता था इस बार फसल सारे रिकॉर्ड तोड़ेगी लेकिन जैसे ही भी दान बनने के समय आए लंबे समय से बारिश नहीं हुई इसलिए दाने छोटा रह गए और फसल काटने के समय फिर बारिश शुरू हो गई इससे बची हुई फसल भी सड़ा दी। इससे उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है जहां-जहां फसल में पानी भरने की समस्या आई है वहां दाने सड गए हैं।
कुल मिलाकर इस बार अन्नदाताओ के किये कही खुश तो कही गम की स्थिति बनी हुई है ।