सवर्ण कर्मचारियों के प्रति मप्र सरकार का यह कैसा रवैया..? रिटायर हो गए पर प्रमोशन नहीं मिला, यह संवैधानिक अधिकारों का हनन

कर्मचारियों के प्रति मप्र सरकार का उदासीन व्यवहार निंदनीय – कोर्ट ने कहा

इंदौर/भोपाल।

मप्र में पिछले छह साल से लगी प्रमोशन पर रोक को लेकर मप्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अनारक्षित वर्ग के अफसरों के प्रमोशन के मामले में सरकार को निर्देश दिया है कि वो 8 हफ्ते में शपथ पत्र दाखिल कर ये बताए कि उसने अब तक इस मामले में क्या-क्या किया, अभी इसकी क्या स्थिति है। तीन जजों की बेंच ने यह आदेश राज्य सरकार की अपील पर दिया है। गौरतलब है कि अनारक्षित वर्ग यानी सवर्ण। और इस वर्ग के अफसरों व कर्मचारियों को वर्षों से प्रमोशन का इंतजार है। कुछ तो प्रमोशन का इंतजार करते-करते रिटायर भी हो गए। कई ऐसे हैं जिन्हें नियुक्ति की तारीख से अभी तक प्रमोशन ही नहीं मिला। वह एक ही पद पर कार्य कर रहे हैं।
दरअसल, ग्वालियर हाईकोर्ट इस मामले में प्रमोशन पर रोक हटाने के लिए सरकार को निर्देशित कर चुका है। जब सरकार ने कोर्ट के आदेश की अवमानना की तो हाईकोर्ट ने अफसरों को कोर्ट बुलाकर सजा भुगतने के लिए तैयार होने को कहा था। इसी कार्रवाई से बचने के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई।

हाईकोर्ट की टिप्पणी- संविधान को दरकिनार नहीं कर सकते

वहीं, इसी मामले में दो दिन पहले ग्वालियर हाईकोर्ट में फिर सुनवाई हुई थी। जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस सत्येंद्र सिंह की बेंच ने सरकार को कहा कि कर्मचारियों को प्रमोशन न दिया जाना उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा है कि पशुपालन विभाग में तो 11 में से 2 चिकित्सक बगैर प्रमोशन रिटायर हो गए हैं। अन्य 9 के मामले में भी नौकरी की तारीख से अभी तक कोई प्रमोशन नहीं मिला है। राज्य सरकार का बिना किसी कारण कर्मचारियों के प्रति ऐसा उदासीन व्यवहार निंदनीय है। याचिकाकर्ताओं को भारत के संविधान के मौलिक अधिकार 14 एवं 16 में जो अधिकार मिले हुए हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में दरकिनार नहीं किया जा सकता। फिर भी हम न्यायिक अनुशासन को ध्यान में रखते हुए बाध्यकारी निर्देश देना स्थगित करते हैं और याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट से निर्देश प्राप्त करने की छूट देते हैं।