मप्र नदियों का मायका, लेकिन घट रहा जलस्तर
मंत्री प्रहलाद पटेल की उद्गम स्थल यात्रा
मध्य प्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है क्योंकि यहां 962 नदियों के उद्गम स्थल हैं। लेकिन स्थिति चिंता जनक है। पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल पिछले दो सालों से नदियों के उद्गम स्थलों की यात्रा कर रहे हैं। उन्होंने अब तक 32 स्रोत देखे हैं, लेकिन उनमें से केवल 7 में ही पानी मौजूद मिला।
किताब का विमोचन
प्रहलाद पटेल दो बार नर्मदा परिक्रमा कर चुके हैं। उनके 35 साल के अनुभव पर आधारित किताब “परिक्रमा कृपा सार” का विमोचन 14 सितंबर को इंदौर में होगा। इसे आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत लॉन्च करेंगे।
पौधारोपण पर सवाल
मंत्री पटेल ने कहा कि नदी संरक्षण के लिए केवल पौधारोपण काफी नहीं है। न तो पौधों की फेंसिंग होती है और न ही उन्हें पानी मिलता है। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण तभी सार्थक होगा जब उसकी सही देखरेख की जाए।
गंभीर स्थिति
- नरसिंहपुर जिले में एक भी नदी बारहमासी नहीं बची।
- शक्कर नदी के उद्गम स्थल पर एक बूंद पानी नहीं था।
- ट्यूबवैल की संख्या बढ़ने से भूजल स्तर लगातार गिर रहा है।
समाधान और योजनाएं
पटेल ने कहा कि जल संरक्षण के लिए पुराने स्रोत जैसे कुएं, बावड़ी और तालाब को पुनर्जीवित करना जरूरी है। साथ ही पहाड़ों पर वृक्षारोपण से ही बारिश का पानी रोका जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि “पानी सिर्फ वृक्ष से मिलेगा, बांध से नहीं।”
सामाजिक परंपराएं
मंत्री ने कहा कि आदिवासी समुदाय नदियों के उद्गम स्थलों की चिंता करते हैं। वे संक्रांति, आखातीज और शिवरात्रि जैसे त्योहारों पर वहां पूजा करते हैं। शक्कर नदी पर तो ग्रामीण हर शुक्रवार दीपक जलाने जाते हैं।
सरकार की पहल
प्रदेश सरकार अब नदियों के संरक्षण के लिए विशेष योजना पर काम कर रही है। उद्गम स्थलों पर अध्ययन, वृक्षारोपण और जल स्रोत पुनर्जीवन पर फोकस किया जाएगा।
निष्कर्ष: मप्र की नदियों का अस्तित्व बनाए रखने के लिए सरकार और समाज को मिलकर कदम उठाने होंगे। खासकर उद्गम स्थलों की रक्षा और वृक्षारोपण ही भविष्य की जल सुरक्षा की कुंजी है।
