उज्जैन। गांधी सागर वन्यजीव अभ्यारण्य में चीतों के लिए कार्य के दौरान लगाए गए कैमरा में विलुप्त प्राय बिल्लीनुमा वन्य जीव काराकेल कैद हुआ है। दो दशक में यह पहली बार प्रमाणिक रूप से सामने आया है कि मध्यप्रदेश में यह जीव भी है। यह लगभग 20 वर्षों में राज्य में इस प्रजाति की पहली पुष्टि के साथ ही प्रोजेक्ट चीता के तहत जैव विविधता की पुनर्प्राप्ति का यह एक आशाजनक संकेत है।
मंदसौर डीएफओ संजय रायखेरे बताते हैं कि यह जीव अभ्यारण्य के गोयला बावडी बीट में कैमरा में ट्रेप हुआ है। प्राथमिक रूप से मिले पिक्चर के माध्यम से वह नर के रूप में सामने आ रहा है। पूर्ण व्यस्क की स्थिति सामने आई है। इसे लेकर अभी और जानकारी जुटाई जा रही है। श्री रायखेरे बताते हैं कि असल में चीता के लिए अभ्यारण्य में चल रही तैयारी के दौरान भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) एफ के वैज्ञानिक और परियोजना अन्वेषक डॉ. बिलाल हबीस ने इसकी पहचान की इसके साथ ही उन्होंने इसे लेकर वन विभाग की वन्यजीव इकाई को एक पत्र में आधिकारिक रूप से सूचित भी किया।
दुर्लभ है जंगली बिल्ली काराकल-
भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को एक बड़ी सफलता मिली है, जब देश की सबसे दुर्लभ और संकटग्रस्त जंगली बिल्लियों में से एक, काराकल, मंदसौर जिले के गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य के अंदर स्थित घिरे हुए चीता बंद प्राकृतिक क्षेत्र में एक कैमरा ट्रैप में कैद हुई। यह लगभग 20 वर्षों में राज्य में इस प्रजाति की पहली पुष्टि की गई दृष्टि है और प्रोजेक्ट चीता के तहत जैव विविधता की पुनर्प्राप्ति का एक आशाजनक संकेत है। डब्ल्यूआईआई, राज्य वन विभाग के साथ मिलकर, 2023 से गांधी सागर परिदृश्य में चीतों, सह-शिकारियों, शिकार प्रजातियों और आवास की स्थिति की निगरानी कर रहा है।
ऊंची छलांग से पक्षी का शिकार करने में माहिर-
काराकल अफ्रीका, मध्य पूर्व, मध्य एशिया और भारत के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं और अपने विशिष्ट काले कान के गुच्छे, अद्भुत फुर्ती और एकाकी, निशाचर आदतों के लिए जाने जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वे शक्तिशाली शिकारी होते हैं, जो उड़ान के दौरान पक्षियों को पकड़ने के लिए ऊंची छलांग लगाने में सक्षम होते हैं। ये बिल्लियाँ सूखे झाड़ियों, अर्ध-शुष्क क्षेत्रों और नम जंगलों को पसंद करती हैं, लेकिन आवास की हानि और मानव अतिक्रमण के कारण इन पर खतरा बढ़ता जा रहा है। आईयूसीएन द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध, काराकल वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत भी शामिल हैं, जो उन्हें भारत में उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। भारतीय संदर्भ में, उनकी छोटी, खंडित आबादी और कम पहचान दरों के कारण वे अति विलुप्त प्राय: में शामिल हैं।
