ब्रह्मास्त्र उज्जैन
सोयाबीन की फसल बिगड़ने के बाद उपज देख किसान हताश हो चला है। प्रथम दृष्टया उसी हताशा का परिणाम जिले के महिदपुर में चौथी आत्महत्या के रूप में सामने आ रहा है। सरकार भावांतर की रैली से धन्यवाद बटोर रही है। जबकि किसान सवाल उठा रहे हैं कि उपज ही नहीं है तो भावांतर कैसे मिलेगा। सूत्रों के अनुसार मुआवजा की आस, बीमा से हताश होकर थका किसान को कोई सहारा नहीं दिख रहा है ऐसे में आत्महत्याओं का दौर चल पड़ा है। सरकार की लैंड पुलिंग योजना ने पहले ही सिंहस्थ क्षेत्र के किसानों को उथल-पुथल कर रखा है। किसान जमीन जाने की दहशत में रात की नींद एवं दिन का चैन खो चुके हैं।
महिदपुर क्षेत्र से पिछले 10 दिनों में चौथी बार किसान के कम उपज होने पर आत्महत्या की दु:खद खबर बुधवार को सामने आई। ग्राम अरनिया चिबड़ी के किसान कमलसिंह गुर्जर (पिता राजाराम गुर्जर) ने प्रथम दृष्टया गहरे कर्ज और लगातार फसल खराब होने की वजह से आत्महत्या कर ली। परिवार के अनुसार, कमलसिंह कई महीनों से बढ़ते कर्ज़ और खराब मौसम से बर्बाद हुई सोयाबीन की फसल को लेकर बेहद चिंतित था। जैसे ही आत्महत्या की जानकारी मिली, विधायक दिनेश जैन बॉस और जिला अध्यक्ष एवं विधायक महेश परमार तत्काल महिदपुर हॉस्पिटल पहुंचे। दोनों जनप्रतिनिधियों ने अस्पताल में पोस्टमार्टम की कार्यवाही करवाते हुए किसान के परिजनों से मुलाकात की। उन्होंने परिवार को ढांढस बंधाया। इसके साथ ही विधायकों ने एसडीएम और अन्य अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे तुरंत किसानों से संवाद करें, उनकी समस्याएँ समझें और उनका समाधान सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन ने समय रहते किसानों की परेशानियां नहीं सुनीं, तो ऐसे दर्दनाक हादसे रुकने वाले नहीं हैं।
विधायक महेश परमार ने कहा यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उस सच्चाई की गूंज है कि खेतों में मेहनत करने वाला किसान अब उम्मीद नहीं, मौत बो रहा है। हर दिन अन्नदाता जिंदगी से हार रहा है और सरकार अब भी यह कह रही है कि कोई नुकसान नहीं हुआ। क्या यही है किसानों के प्रति संवेदनशीलता? क्या यही है वादों का सुनहरा भारत? उन्होंने आगे कहा कि जब तक सरकार खेतों में नहीं उतरेगी और किसानों की वास्तविक स्थितियों को नहीं समझेगी, तब तक घोषणाएँ सिर्फ कागजों पर ही रहेंगी।
किसानों की जान बचाना ही सबसे बड़ी जिम्मेदारी
जनप्रतिनिधियों ने कहा कि अन्नदाता की मौत पूरे समाज की असफलता है। आज जरूरत है कि सरकार किसानों के लिए मानसिक, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करे। कमलसिंह की मौत केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र का दर्द बन चुकी है। महिदपुर के लोगों ने सरकार से अपील की है कि वह तुरंत राहत शिविर लगाए, कर्ज माफी की प्रक्रिया तेज करे और मौके पर सहायता पहुँचाएं, ताकि कोई और किसान अपने खेतों में मौत न बोए।
इन किसानों ने की आत्महत्या
महिदपुर तहसील में पिछले 10 दिनों में आत्महत्या करने वाले किसानों की सूची बढ़ती ही जा रही है। इसकी शुरूआत 6 अक्टूबर से हुई।
ल्ल राम सिंह भामि, 52 वर्ष, ग्राम-बागला
ल्ल दिनेश शर्मा पिता जगदीश शर्मा, 38 वर्ष, ग्राम -खजूरिया मंसूर
ल्ल सबसिंह पिता नग सिंह, 61 वर्ष, ग्राम- सेकली
ल्ल कमल सिंह गुर्जर पिता राजाराम गुर्जर, 35 वर्ष, ग्राम -अरनिया नजिक चिबड़ी
नोट- आत्महत्या के मामले आमजन, विशिष्टजन एवं परिजनों के बयानों के आधार पर आधारित है। दैनिक ब्रह्मास्त्र आत्महत्या के कारणों की पुष्टि नहीं करता है।
पंद्रह दिनों में चौथी आत्महत्या, किसानों की हालत बदतर
पिछले 10 दिनों में महिदपुर क्षेत्र में यह चौथे किसान की आत्महत्या है। प्रथम दृष्टया इससे पहले भी इसी इलाके में तीन किसानों ने फसल खराबी और कर्ज के दबाव में अपनी जान गंवा दी थी। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पीली मोजेक बीमारी और अनियमित बारिश ने सोयाबीन की फसल को बुरी तरह प्रभावित किया है। सरकारी सर्वे अधूरे हैं और राहत राशि अब तक किसानों तक नहीं पहुँची है। ग्रामीणों ने प्रशासन से सवाल किया कि जब हालात इतने गंभीर हैं, तो किसानों तक मदद क्यों नहीं पहुँच रही? हर साल यही हाल होता है पहले बारिश बर्बाद करती है, फिर कर्ज और इंतजार मार देता है, एक स्थानीय किसान ने आक्रोश में कहा।
लैंड पुलिंग : किसानों की नींद एवं चैन छीना
सूत्रों के अनुसार सरकार ने उज्जैन के सिंहस्थ क्षेत्र में आध्यात्मिक नगरी बसाने के नाम पर 10 हजार बीघा से अधिक जमीन के कृषकों को विकास प्राधिकरण के माध्यम से जमीन अधिगृहण के नोटिस दिए हैं। इसे लेकर पूरे सिंहस्थ क्षेत्र के गांवों में किसानों का विरोध रहा है। किसान कई बार सड़कों पर उतरे। यहां तक की किसानों को रातोंरात घरों से उठाकर उन पर प्रतिबंधात्मक धाराओं में प्रकरण दर्ज किए गए। मामले में भारतीय किसान संघ ने अपना विरोध जबरर्दस्त तरीके से दर्ज करवाया था। तब से मामला कुछ शांत है लेकिन अंदर ही अंदर पूरे मामले में अलग-अलग प्लान के तहत संबंधित योजना को अमल में लाने की बात बार-बार बाहर आ रही है। जिसके कारण से किसानों की रात की नींद एवं दिन का चैन हराम हो गया है, बाकी स्थिति सोयाबीन की फसल बर्बाद होने से हो गई और किसानों पर प्रकृति का वज्रपात हो गया।
आत्महत्या के मामलों में देखा जा रहा है। संघ की जिला इकाईयों को परीक्षण के लिए कहा गया है। यह सही है कि इस बार सोयाबीन में उपज बहुत ही कम हुई है।
-कमलसिंह आंजना, प्रदेशाध्यक्ष भारतीय किसान संघ, मध्यप्रदेश
