चुनावी राजनीति में उलझी मोक्षदायिनी शिप्रा : बड़ा  सवाल! यदि पीने योग्य है शिप्रा का पानी तो फिर क्यों बहाए जा रहे करोड़ों रूपए!

ब्रह्मास्त्र उज्जैन

महसूस होता है कि लोकसभा चुनाव की राजनीति में हमारी मोक्षदायिनी अर्थात शिप्रा मैया उलझ गई है…। शहर के दो नेताओं ने शिप्रा को लेकर अलग अलग बयानबाजी की है और यर्थाथ समझाने का भी प्रयास शहरवासियों को किया है। अब इनमें से सच्चा कौन है और कौन झूठा है..इसका जवाब तो स्वयं शिप्रा मैया भी नहीं दे सकती है क्योंकि शिप्रा मैया बीते लंबे समय से अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है। बावजूद इसके बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि यदि शिप्रा का पानी पीने योग्य है तो फिर शासन प्रशासन शिप्रा के शुद्धिकरण के नाम पर करोड़ो रूपए क्यों बहा रहा है..!
गौरतलब है कि बीते दो दिनों के भीतर शिप्रा का मुद्दा चरम पर है। शिप्रा में मिलने वाले गंदे नाले के पानी का विरोध करते हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार महेश परमार ने बहते हुए गंदे पानी में धरना देकर बीजेपी सरकार को कोसा था वहीं इसके दूसरे दिन ही नगर निगम जलकार्य समिति के प्रभारी और बीजेपी पार्षद प्रकाश शर्मा ने उसी स्थान पर पहुंचकर एक ग्लास में शिप्रा का पानी पीकर यह दावा किया था कि शिप्रा का पानी पूरी तरह से शुद्ध है…। लिहाजा शहरवासियों में इस बात का सवाल खड़ा हो रहा है कि यदि शिप्रा का पानी पीया जा सकता है तो फिर करोड़ो का खर्च शुद्धिकरण के नाम पर क्यों..!
बीते दो दशकों में 600 करोड़ से अधिक खर्च हो गए जानकारी के अनुसार बीते दो दशकों में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर कोई 600 करोड़ से अधिक राशि खर्च की जा चुकी है बावजूद इसके शिप्रा का आंचल शुद्ध होने का नाम नहीं ले रहा है। चाहे जब गंदे नालों का पानी शिप्रा में मिल जाना, नाला फूटकर शिप्रा में बह जाने जैसे मामले तो आम हो गए है। अभी दो वर्ष पहले भी करोड़ो की योजना बनाकर भोपाल भेजी गई है।

शिप्रा शुद्धिकरण-सफाई के नाम पर डकैती का धंधा….!
शिप्रा शुद्धिकरण और सफाई के नाम पर बीते वर्षों में करोड़ो खर्च कर दिए गए लेकिन स्थिति आज भी यथावत ही बनी हुई है। विभिन्न सरकारों ने शिप्रा शुद्धिकरण के दावे किए और बजट भी स्वीकृत किया। इतनी बड़ी राशि कैसे और किस तरह से खर्च होती रही इसका जवाब किसी जिम्मेदार के पास संभवत: नहीं है। हर बार शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर प्रदेश सरकार द्वारा हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए जाते हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं मिला। इसका मतलब साफ है कि शिप्रा शुद्ध नहीं करना है बल्कि उसके नाम पर केवल भ्रष्टाचार करना है।
शिप्रा शुद्धिकरण-सफाई के नाम पर डकैती का धंधा….!
शिप्रा शुद्धिकरण और सफाई के नाम पर बीते वर्षों में करोड़ो खर्च कर दिए गए लेकिन स्थिति आज भी यथावत ही बनी हुई है। विभिन्न सरकारों ने शिप्रा शुद्धिकरण के दावे किए और बजट भी स्वीकृत किया। इतनी बड़ी राशि कैसे और किस तरह से खर्च होती रही इसका जवाब किसी जिम्मेदार के पास संभवत: नहीं है। हर बार शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर प्रदेश सरकार द्वारा हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए जाते हैं लेकिन नतीजा कुछ नहीं मिला। इसका मतलब साफ है कि शिप्रा शुद्ध नहीं करना है बल्कि उसके नाम पर केवल भ्रष्टाचार करना है।

पूर्व में क्या हुआ उस पर ध्यान नहीं
जब नई योजना बनती है तो पूर्व में क्या हुआ उस पर ध्यान नहीं रखा जाता और एक अलग डीपीआर बनाई जाती है। उक्त डीपीआर नये अधिकारी बनाते हैं जिनको कोई जमीनी हकीकत पता नहीं होती। आज भी शिप्रा नदी में गंदा पानी मिल रहा है और नदी का पानी बदबू मार रहा है। इसका कारण यह है कि नाले मिल रहे हैं और आस पास का अपशिष्ट कचरा भी मिल रहा है।

कवायद चार दशक से ज्यादा पुरानी
इंदौर में प्रवाहित होकर उज्जैन से पहले शिप्रा में मिलने वाली कान्ह और सरस्वती नदियों को शुद्ध करने की कवायद चार दशक से ज्यादा पुरानी है। दोनों नदियों के शुद्धिकरण पर अलग-अलग हिस्सों में करोड़ो रुपये की राशि खर्च की जा चुकी है, लेकिन नदियाँ पूरी तरह से शुद्ध नहीं हो पाईं। वर्तमान में प्रदेश सरकार द्वारा सिंहस्थ 2028 की तैयारी के चलते इंदौर और उज्जैन को जोड़कर मेगा प्लान तैयार किया है जिसमें इंदौर की कान्ह सरस्वती नदी और शिप्रा नदी के पानी को स्वच्छ निर्मल एवं प्रवाहमान बनाना प्रमुख है।

प्राचीन पुराणों उल्लेख देखने को मिलता है
प्राचीन शिप्रा नदी धार्मिक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण है तथा इस नदी का विभिन्न प्राचीन पुराणों ब्रह्मपुराण, स्कन्दपुराण व कालिदास रचित मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है। इसकी उत्पत्ति को लेकर अलग- अलग धार्मिक मान्यताएं हैं। जिनके आधार पर शिप्रा नदी का जन्म भगवान विष्णु की अंगुली के रक्त से हुआ है मेघदूत में उल्लेख देखने को मिलता है। कहा जाता है कि भगवान शिव एक बार भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने पहुंचे, उस समय भगवान विष्णु ने भिक्षा देते हुए उन्हें अंगुली दिखा दी थी, जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उनकी अंगुली पर वार कर दिया।मान्यता है कि उस समय भगवान विष्णु की अंगुली से जो रक्त धारा निकली, वही धरती पर आकर शिप्रा नदी बन गयी। एक और धार्मिक मान्यता के आधार पर शिप्रा नदी की उत्पत्ति भगवान शिव के खप्पर से हुई है।