वस्तुत्व महाकाव्य हिंदी साहित्य जगत का आध्यात्मिक एवं विलक्षण साहित्य है


इंदौर। गोधा स्टेट सुमति धाम में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज द्वारा रचित वस्तुत्व महाकाव्य पर दो दिवसीय विद्बत
राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रोफेसर उदय चंद्र जैन की अध्यक्षता में प्रारंभ हुई।


गोष्ठी के प्रथम सत्र में प्रोफेसर संगीता मेहता इंदौर ने वस्तुत्व महाकाव्य में प्रकृति और पर्यावरण विषय पर अपना आलेख वाचन करते हुए कहा महाकाव्य में आचार्य श्री की जीवन और जगत के प्रति व्यापक दूर दृष्टि उद्घाटित होती है। उन्होंने महाकाव्य में पर्यावरण और प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सभी प्राणियों के प्रति दया करुणा एवं वात्सल्य का भाव रखने और मूक पशु पक्षियों की हिंसा ( हत्या) न करने की प्रेरणा दी है।


लाडनूं राजस्थान से आए पूर्व कुलपति डॉक्टर नलिन के शास्त्री ने वस्तुत महाकाव्य का समेकित चिंतन विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वस्तुत्व महाकाव्य आत्म बोधक और आत्म शोधक द्वादश खंडो में विभक्त जैन दर्शन के आध्यात्मिक सिद्धांतों को उद्घाटित करने वाला प्रमाणिक महाकाव्य है।

आचार्य श्री ने भाषा को भावों की अभिव्यक्ति का साधन बनाते हुए न केवल आगम के ज्ञान को उद्धाटित किया है बल्कि तुकांत अतुकांत काव्यों के माध्यम से आत्मा से परमात्मा बनने और देह से विदेह तक की साधना करने कि कला भी बताई है।


प्रोफेसर उदय चंद जैन ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि आचार्य श्री की लेखनी चमत्कारिक है और महाकाव्य आध्यात्मिक काव्यों का संग्रह है और उसमें में चारों अनुयोगों और आध्यात्मिक ग्रंथ समय सार का सार दिखाई देता है।
इस अवसर पर आचार्य श्री के आशीर्वचन भी हुए और आचार्य श्री की कृति कर्म विपाक का विमोचन डॉ नलिन के शास्त्री, प्रोफेसर नीरज जैन, अभिषेक जैन ने किया। प्रारंभ में अतिथि विद्वानों का स्वागत सुमति धाम निर्माता श्री मनीष गोधा ने चंदन का तिलक लगाकर, मोतियों की माला पहनाकर एवं श्रीफल और स्मृति स्वरूप किट देकर किया। गोष्ठी का संचालन डॉक्टर श्रेयांश जैन बड़ौत ने किया। आचार्य श्री के पाद प्रक्षालन श्री आजाद कुमार एवं अमित जैन ने किया । इस अवसर पर डॉक्टर जैनेंद्र जैन,
टी के वेद, निर्मल कासलीवाल कैलाश वेद एवं दिलीप पाटनी आदि समाज श्रेष्ठि उपस्थित थे।