April 27, 2024

-योगेंद्र जोशी

उज्जैन में कविवर कुमार विश्वास की भद पिट गई। संघियों को अनपढ़ बताने के बाद उन्होंने दूसरी रात माफी मांग ली। अंदाज घिसा- पिटा था कि मेरा आशय जो समझा गया वह नहीं था। फिर भी अगर किसी को दुख पहुंचा हो तो मैं माफी मांगता हूं। एक और सवाल करके उन्होंने अपने आपको भविष्य के लिए सुरक्षित भी कर लिया। उन्होंने कहा कि दिन भर दिल्ली से भोपाल तक अनेक फोन कॉल आए और मुझे कहा गया कि आप वहां जाएं और अपनी बात रखें। कुमार विश्वास ने सवाल किया कि अभी भी इस मंडप में कोई ऐसा है, किसी को मेरे कहने से तकलीफ हुई हो तो वह खड़ा होकर एक बार बोल दे। मैं अपनी वाणी को विराम कर यहां से चला जाऊंगा। जाहिर है कोई भी खड़ा नहीं हुआ। तो क्या संघियों के अनपढ़ होने की बात से उस मंडप में किसी को कोई तकलीफ नहीं हुई..? कुमार इसे भविष्य में भुना सकते हैं। यह उनकी शैली का एक भाग माना जाना चाहिए। यह भी ध्यान रहे कि कुमार “शब्द साधक” हैं। ठहरे हुए पानी में पत्थर मारकर पानी उछालना उन्हें भली-भांति आता है। यदि भविष्य में कुमार ने पत्थर उछाला! तो फिर विश्वास करने की यह भोपाल- दिल्ली से फोन करने वालों की उन्हें आमंत्रण की पहली चूक के बाद दूसरी चूक होगी। भद उन आयोजकों की भी पिटी, जिन्होंने पैसा देकर एक तरह से अनपढ़ होने की गाली खाई या संघ को खिलवाई। विक्रमोत्सव के दौरान गाली देकर माफी मांगने को कुमार की अपनी विद्वता के अंतिम चरण का प्रदर्शन माना जाना चाहिए। कवि मंचों के अलावा वे “तुलसी पीठ” पर बैठकर रामकथा कर रहे हैं। यह राम कथा बाल्मीकि रामायण, तुलसी रामायण और ऐसी कितनी ही रामायण से अलहदा है। हालांकि, ज्यादातर प्रसंग इन्हीं ग्रंथों से लिए गए हैं , लेकिन उनकी वाणी तटबंध तोड़ते हुए भूत को वर्तमान से और धर्म- अध्यात्म को आज की राजनीति से जोड़ती नजर आ रही है। रामकथा में तुलसी पीठ पर विराजमान होने के बाद भी उनकी मन की पीठ उन्हें एक अलग ही विचारधारा में जोड़ती हुई नजर आती है। वह चाह कर भी राजनीति से अलग नहीं हो पा रहे हैं। उनके उदाहरण इस बात की खुलकर चुगली करते हैं कि रामकथा में वे अपने – अपने राम का झुनझुना लेकर तीखे व्यंग्य बाण का संधान करने से बच नहीं पा रहे हैं। उज्जैन में अपने-अपने राम में उन्होंने वामपंथियों को कुपढ़ और संघ को अनपढ़ बता दिया। अब वे भले ही कहें कि उनका यह आशय नहीं था, लेकिन उनके द्वारा “संघ कथा” अप्रत्याशित भी नहीं थी।
कुमार विश्वास एक बड़े कवि, रचनाधर्मी, चिंतक और ईमानदारी का डंका पीटने वाले राजनेता हैं। राजनेता इसलिए कि जिनके कंधों पर वे देश में क्रांति लाने निकले थे, वही कंधे अब लगातार उनके नफरती व्यंग्य बाणों के शिकार हैं। हमारे वाला- हमारे वाला कहकर वे लगातार व्यंग्य बाण छोड़ते रहते हैं , परंतु वह कवि मंचों पर होता है, इसलिए वह उनकी अपनी शैली और स्वयं की खीझ उतारने का एक साधन माना जाता है। राम कथा में चित्त पावन होना चाहिए। रामकथा को राम के ढंग से जीना चाहिए। भगवान राम ने रावण सहित कई राक्षसों का वध किया परंतु मर्यादा नहीं खोई। आजकल सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कथा के नाम पर मन की स्वार्थ सिद्धता वाली व्यथा ज्यादा उजागर की जाती है। वामपंथियों को कुपढ़ और संघ को अनपढ़ कहकर मीडिया में जगह तो खूब मिल सकती है, लेकिन संघी अनपढ़ हों, ऐसा मानना शायद सूरज पर थूकने जैसा होगा। कल रात को कुमार विश्वास के कहे हुए यह शब्द विश्वास की कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। संघ में एक से एक चिंतक और विचारक हैं , यह एकमात्र ऐसा संगठन है, जिसे भीड़ जुटाने के लिए कोई विज्ञापन नहीं देना होता। किसी के हाथ- पैर नहीं जोड़ना पड़ता। किसी नेता को या किसी अन्य संगठन को भीड़ जुटाने का टारगेट नहीं देना पड़ता। उनके पदाधिकारी और नेता भी ऐसे नहीं हैं, जिनका खूब नाम चल रहा हो। ऐसे भी नहीं हैं,जिनके बड़े-बड़े बैनर पोस्टर से शहर ढका हुआ हो। फिर भी उनके कार्यक्रम में कुर्सियां खाली नहीं रहती। कुमार विश्वास पढ़े लिखे समझदार और बेहद अनुभवी हैं। भीड़ जुटाने की उनमें कला है। उनके नाम से भीड़ चली आती है और यह उनकी लोकप्रियता का बड़ा पैमाना है। हो सकता है कुमार विश्वास ने राम को खूब पढ़ लिया हो, वेदों को भी पढ़ लिया हो तथा अन्य ग्रंथों को भी। परंतु, ऐसा उन्होंने अगर किया है तो उसके पीछे उनका मकसद व्यावसायिक ही प्रतीत होता है। कुमार मैं आपको पहचानता हूं। आपसे मिला भी हूं और आपसे कभी चर्चा भी हुई है। आप बड़े आदमी हैं। मुझ जैसे आदमी को जेहन में नहीं रख पाएंगे, लेकिन राम के जन्म का उद्देश्य ही मर्यादा है। आप सर्वगुण संपन्न हैं ,लेकिन मर्यादा का कहीं ना कहीं अभाव नजर आ रहा है।…और हां, यदि आप यह बात किसी कवि सम्मेलन में कहते तो निश्चित रूप से यह कलम नहीं चलती। इस मामले में कांग्रेस का यह कहना ठीक ही प्रतीत होता है कि कथाकारों का धर्म के घोड़े पर सवार होकर राजनीतिक टिप्पणियां करना अनुचित है।