उज्जैन: 26 लाख का पैकेज छोड़कर बने महंत सत्यानंद
उज्जैन के बड़ा उदासीन अखाड़े के नए युवा महंत सत्यानंद ने कम उम्र में ही संत मार्ग चुनकर सबको चौंका दिया। उन्हें विदेश की मल्टीनेशनल कंपनी से सालाना 26 लाख रुपए का पैकेज मिला था, लेकिन उन्होंने नौकरी ठुकराकर अध्यात्म और समाज सेवा का रास्ता अपनाया। बिहार के सुपौल के रहने वाले 27 वर्षीय सत्यानंद ने पहले काशी, गया और हरिद्वार में महंत पद संभाला और अब उज्जैन में अध्यात्म का पाठ पढ़ा रहे हैं।
पढ़ाई में अव्वल, योग में एमए किया
सत्यानंद का जन्म सुपौल में हुआ। पढ़ाई में हमेशा अच्छे रहे और बचपन से ही योग व अध्यात्म की ओर झुकाव रहा।
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8वीं तक पढ़ाई सुपौल के आरएसएम पब्लिक स्कूल से की।
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2017 में उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से राजनीति शास्त्र में स्नातक।
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इसके बाद योग में एमए किया।
ऑस्ट्रेलिया-वियतनाम से नौकरी के ऑफर ठुकराए
पढ़ाई के दौरान सत्यानंद को ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी से योग प्रशिक्षक के तौर पर तीन साल का ऑफर मिला था। वेतन करीब सवा दो लाख रुपए प्रति माह था। इसके अलावा वियतनाम से भी प्रस्ताव मिला। लेकिन उन्होंने यह सब ठुकराकर संन्यास का मार्ग चुना। इसी दौरान वे शुभम से महंत सत्यानंद बने।
परिवार का पूरा सहयोग
महंत सत्यानंद अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। पिता के निधन के बाद भी उनकी मां ने संन्यास का समर्थन किया और कभी वापस लौटने को नहीं कहा। सत्यानंद के अनुसार – “संत बनने के लिए व्यक्ति को खुद से पहले समाज के बारे में सोचना चाहिए। नौकरी करता तो पारिवारिक जीवन में उलझकर रह जाता।”
महंत पद की यात्रा
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2019 में दीक्षा ली।
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2020 में गया में महंत बने।
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हरिद्वार कुंभ मेला में प्रबंधन और सेवा की।
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वाराणसी में महंत पद संभाला।
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अब उज्जैन के बड़ा उदासीन अखाड़े के महंत हैं।
वर्तमान में वे उज्जैन में रहकर युवाओं और साधकों को योग, संस्कृत और अध्यात्म का पाठ पढ़ा रहे हैं।
