4 साल की मासूम से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास का मामला: हाईकोर्ट ने फांसी की सजा बदली 25 साल की कैद में

4 साल की मासूम से दुष्कर्म और हत्या के प्रयास का मामला: हाईकोर्ट ने फांसी की सजा बदली 25 साल की कैद में


मध्यप्रदेश से एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है, जिसमें 20 वर्षीय आदिवासी युवक ने 4 साल की मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और फिर उसकी हत्या करने का प्रयास किया। यह मामला खंडवा जिले का है और 2022 में घटित हुआ था।


⚖️ हाईकोर्ट ने बदला फांसी का फैसला

मामले में खंडवा की पॉक्सो अदालत ने 21 अप्रैल 2023 को दोषी राजकुमार उर्फ राजाराम को फांसी की सजा सुनाई थी। सजा पर उच्च न्यायालय की स्वीकृति हेतु मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जहां आरोपी की ओर से अपील भी की गई थी।

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की युगलपीठ – न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में बदलाव करते हुए फांसी की सजा को 25 वर्षों के कठोर कारावास में बदल दिया।


🧾 कोर्ट का तर्क: पृष्ठभूमि पर आधारित निर्णय

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा:

“यह मामला निश्चित ही जघन्य श्रेणी का है। चार साल की मासूम से दुष्कर्म कर, गला घोंटकर सुनसान जगह फेंकना नृशंस कृत्य है।
लेकिन आरोपित की पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को देखते हुए, यह मानवीय दृष्टिकोण से विचार करने योग्य है।”

कोर्ट ने बताया कि:

  • आरोपी आदिवासी समुदाय से है

  • निरक्षर है और

  • बाल्यावस्था से ही देखरेख और शिक्षा से वंचित रहा है

  • जीविकोपार्जन के लिए उसने कम उम्र में ढाबे पर काम करना शुरू कर दिया था, जहां उसे सुरक्षित और नैतिक वातावरण नहीं मिला


😢 दिल दहलाने वाली वारदात

घटना 30-31 अक्टूबर 2022 की रात की है। पीड़िता के पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि बच्ची रात में सोते समय गायब हो गई थी।
खोजबीन के बाद बच्ची मरणासन्न अवस्था में एक आम के बाग में मिली। उसे इंदौर के बॉम्बे अस्पताल में भर्ती कराया गया था।


🧬 डीएनए बना बड़ा सबूत

ट्रायल के दौरान डीएनए रिपोर्ट ने यह सिद्ध किया कि आरोपी ही अपराधी था।
हालांकि, आरोपी पक्ष ने कहा कि “कोई चश्मदीद गवाह नहीं है” और सिर्फ डीएनए साक्ष्य है।
इस पर राज्य सरकार ने दलील दी कि “डीएनए वैज्ञानिक सबूत है, जो स्वयं में पर्याप्त और विश्वसनीय है।”


📌 निष्कर्ष

यह मामला एक ओर जहां बाल यौन अपराधों की गंभीरता और भयावहता को उजागर करता है, वहीं यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका केवल अपराध की प्रकृति नहीं, बल्कि अपराधी की सामाजिक पृष्ठभूमि, शिक्षा और जीवन के संघर्षों को भी ध्यान में रखकर फैसला सुनाती है।

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