‘मानसिक विकृत’ शब्द हटाकर ‘बौद्धिक दिव्यांग’ का इस्तेमाल: उज्जैन के पंकज मारु की जीत, 7 करोड़ दिव्यांगों को मिला सम्मान

‘मानसिक विकृत’ शब्द हटाकर ‘बौद्धिक दिव्यांग’ का इस्तेमाल: उज्जैन के पंकज मारु की जीत, 7 करोड़ दिव्यांगों को मिला सम्मान

भारतीय रेलवे ने 1 जून 2025 से अपने सभी रियायती पासों में ‘मानसिक विकृत’ की जगह ‘बौद्धिक दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। यह बड़ा बदलाव उज्जैन के डॉ. पंकज मारु की लंबी कानूनी लड़ाई का नतीजा है।

बेटी के सम्मान के लिए शुरू की लड़ाई

डॉ. पंकज मारु की 26 वर्षीय बेटी सोनू मानसिक रूप से दिव्यांग (65% बौद्धिक अक्षमता) है। 2019 में रेलवे का रियायती पास बनवाने पर जब उन्होंने ‘मानसिक विकृत’ लिखा देखा, तो उन्हें यह शब्द अपमानजनक लगा।

  • डॉ. मारु ने रेलवे बोर्ड, पश्चिम रेलवे और डीआरएम तक पत्र लिखे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

  • मजबूर होकर उन्होंने दिल्ली स्थित मुख्य दिव्यांगजन आयुक्त के कोर्ट में याचिका दायर की।

कानूनी लड़ाई का सफर

  • कोर्ट ने 15 जुलाई 2024 को रेलवे से जवाब मांगा।

  • रेलवे ने 4 सितंबर 2024 को कहा कि शब्द बदला नहीं जा सकता।

  • डॉ. मारु ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (Section 92(a)) का हवाला देकर कहा कि यह दिव्यांगों की गरिमा का उल्लंघन है और एट्रोसिटी एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है।

  • 17 जुलाई 2025 को कोर्ट ने रेलवे को एक महीने के भीतर शब्दावली बदलने का आदेश दिया।

रेलवे ने बदला प्रोफॉर्मा

रेलवे ने 9 मई 2025 को सर्कुलर जारी कर बदलाव की घोषणा की और 1 जून से नया प्रोफॉर्मा लागू कर दिया। अब रियायती पासों पर लिखा जा रहा है:

“बौद्धिक दिव्यांग जो बिना सहायता के यात्रा नहीं कर सकते।”

7 करोड़ दिव्यांगों को मिला सम्मान

इस फैसले से पूरे देश के 7 करोड़ दिव्यांगजन लाभान्वित होंगे। डॉ. मारु की इस पहल को समाज में संवेदनशीलता और सम्मान की दिशा में एक बड़ी जीत माना जा रहा है।


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