उज्जैन। आम दवा खरीददारों को अब दुकानों पर डिस्काउंट के बोर्ड देखने को नहीं मिलेंगे। दुकान पर जाकर ही तय होगा कि वहां उपभोक्ता को छूट पर दवा मिल सकेगी या नहीं और कितनी छूट मिल सकेगी। इसे लेकर फार्मेसी काउंसिल ने सख्ती करते हुए पंजीबद्ध फार्मासिस्ट एवं दवा दुकान संचालकों को निर्देश जारी किए हैं। ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए छूट और रियायतों का प्रचार करने पर – रजिस्ट्रेशन कैंसिल किया जाएगा। मध्यप्रदेश में दवाई की दुकानों पर 10 से 80 फीसदी छूट का बोर्ड लगाने वाले – स्टोर्स मालिकों के खिलाफ मध्यप्रदेश फार्मेसी काउंसिल – कारवाई करेगा। काउंसिल ने राज्यभर के पंजीकृत फार्मासिस्टों और मेडिकल स्टोर मालिकों को चेतावनी दी है। काउंसिल ने नोटिस जारी कर कहा कि कई मेडिकल स्टोर बोर्ड और सोशल मीडिया के जरिए डिस्काउंट का लालच देकर उपभोक्ताओं को खींच रहे हैं, जो फॉर्मेसी प्रेक्टिस रेगुलेशन 2015 के अनुसार अनैतिक और अवैध है। ऐसी गतिविधियों में पकड़े जाने पर फार्मासिस्ट का पंजीकरण रद्द या निलंबित किया। जा सकता है। साथ ही मेडिकल स्टोर पर भी कानूनी कार्रवाई होगी। स्टोर्स संचालकों को डिस्काउंट बोर्ड हटाने के लिए 15 दिन का समय दिया गया है।छोटे मेडिकल स्टोर्स को हो रहा था नुकसान-नोटिस में कहा है कि बड़े कारोबारी आर्थिक ताकत के दम पर इस तरह के विज्ञापन कर छोटे मेडिकल दुकानदारों केसाथ अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा कर रहे हैं। यह प्रतिस्पर्धा अधिनियम 2002 की धारा 4 का उल्लंघन है। काउंसिल के अध्यक्ष संजय जैन और रजिस्ट्रार भाव्या त्रिपाठी ने सभी मेडिकल स्टोर्स से कानून का पालन करने और अनैतिक प्रतिस्पर्धा से बचने की अपील की।केमिस्टों के हित में निर्णय-एमपीसीडीए (मध्यप्रदेश केमिस्ट एवं ड्रगिस्ट एसोसिएशन) – ने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, गोवा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और अब जम्मू-कश्मीर की तरह मध्यप्रदेश में भी दवा दुकानों पर डिस्काउंट – बोर्ड लगाने वाले फार्मासिस्टों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश जारी किया है। यह केमिस्टों के हित में ऐतिहासिक निर्णय है।83 हजार फार्मासिस्ट,1 लाख से अधिक स्टोरइधर सामने आ रहा है कि प्रदेश में फार्मेसी काउंसिल में लगभग 83 हजार की संख्या में फार्मासिस्ट रजिस्टर्ड हैं परंतु एक लाख के उपर मेडिकल स्टोर्स संचालित किए जा रहे हैं जो कहीं ना कहीं नियम विरुद्ध संचालित किए जा रहे हैं। कंपीटिशन के चक्कर में कई मेडिकल स्टोर्स संचालक डिस्काउंट देते हुए मरीजों को ऐसी दवाएं दे रहे थे जो गुणवत्ता विहीन होने के साथ मानक स्तर पर सही नहीं थी। डिस्काउंट के चक्कर में यह कालाबाजारी करते हुए दवाओं के साथ छेडछाड़ की जा रही थी और आम जनता को लूटा जा रहा था। जबकि ब्रांडेड दवाओं का मार्जिन 15% से 20% तक फिक्स रहता है।
