April 30, 2024
दैनिक अवन्तिका उज्जैन। शिप्रा शुद्धिकरण की मांग को लेकर धार्मिक नगरी उज्जैन में आज गुरुवार को संत समाज धरना दे रहा है। शिप्रा के दत्त अखाड़ा घाट पर सुबह अखाड़ों व आश्रमों से जुड़े साधु,संत बड़ी संख्या में एकत्रित हुए और धरना शुरू किया गया।
संतों का कहना है कि शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर शासन, प्रशासन अब तक लाखों, करोड़ों रुपए खर्च कर चुका है लेकिन शिप्रा शुद्ध नहीं हुई। आज भी शिप्रा में शहर के बड़े-बड़े नाले मिल रहे हैं। इसी शिप्रा के गंदे पानी में देश भर से उज्जैन आने वाले हजारों, लाखों श्रद्धालु पर्व के दौरान स्नान करते हैं। संत समाज की आकांक्षा है कि शिप्रा सदानीरा प्रवाहमान रहे और इसका जल सदैव आचमन व स्नान के योग्य बना रहे। वर्तमान में शिप्रा की स्थिति ऐसी हो गई है कि इसका जल स्नान करना तो दूर आचमन के योग्य। भी नहीं रह गया है। बहुत ही खेद का विषय है कि देश के सबसे स्वच्छ शहर और लगातार 5 वर्ष तक देश में स्वच्छता के मामले में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले इंदौर से आने वाला प्रदूषित जल देश की सप्तपुरियों में प्रधान अवंतिका तीर्थ (उज्जैन) के लिए अभिशाप बन गया है। शिप्रा नदी से ही उज्जैन की पहचान है। शिप्रा उज्जैन में है, इसलिए यहां सिंहस्थ है।
शिप्रा के अस्तित्व से ही उज्जैन का नाम है
शिप्रा के अस्तित्व से ही उज्जैन धार्मिक नगरी है। मोक्षदायिनी शिप्रा को होने वाला नुकसान धर्म नगरी उज्जैन के लिए हानिकारक है। शिप्रा जल निर्मल और शुद्ध किए बिना, शिप्रा नदी को प्रदूषण मुक्त किए बिना उज्जैन में विकास के दावे करना बेमानी है। राज्य और केंद्र सरकार ने उज्जैन खासकर महाकाल क्षेत्र में विकास के लिए स्मार्ट सिटी कंपनी के माध्यम से करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य शुरू किए है। शासन, प्रशासन को यह ध्यान में रखना होगा कि श्रद्धालुजन उज्जैन में आधुनिक बिल्डिंग, फव्वारे या क्रत्रिम सुदरता देखने नहीं आते वरन उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन और पुण्य सलिला मां शिप्रा में स्नान के लिए आते है।
सिंहस्थ 2016 के पहले से संत मांग कर रहे हैं
सिंहस्थ 2016 के पूर्व से ही उज्जैन का संत समाज इंदौर से बहकर उज्जैन आने वाले गंदे पानी को ओपन नहर के माध्यम से शिप्रा नदी में मिलने से रोकने की मांग करता आ रहा है। राज्य शासन के कतिपय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने संतजनों की इस मांग को दरकिनार कर पाईप लाइन के जरिए डायवर्शन की योजना को लागू किया। लगभग 150 करोड़ रुपए की यह योजना औचित्यहीन होकर रह गई है। अब स्थिति यह है कि स्नान पर्वो के अवसर पर बिना नर्मदा का जल लाए स्नान कराना असंभव हो गया है।
धरना दे रहे हैं संतों की यह प्रमुख मांग
– त्रिवेणी से कालियादेह महल तक शिप्रा नदी में कोई भी दूषित जलस्त्रोत नहीं मिले।
– स्वच्छता में लगातार 5 बार देश में नंबर 1 का तमगा हांसिल करने वाले इंदौर का प्रदूषित पानी शिप्रा में मिलने से तत्काल रोका जाए।
– ओपन नहर के माध्यम से इसे शिप्रा जल में मिलने से रोका जाए। इंदौर का दूषित जल शिप्रा में मिलने से रोकने के स्थाई इंतजाम किए जाए।
– शहर के समस्त नालों का दूषित जल शिप्रा में मिलने से रोका जाए ताकि शिप्रा जल आज मन करने योग्य हो सके।
– पवित्र नगरी के समस्त धार्मिक क्षेत्र में मांस, मदिरा, अंडे व अन्य निषेध वस्तुओं का विक्रय तत्काल रोका जाए। जहरीका 5- देवास जिले से शिप्रा जल में मिलने वाले प्रदूषित पानी को शिप्रा जल में मिलने से रोका जाए।
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है सिंहस्थ का करोड़ों रुपया, संतों को झांसे में लेने की फिर कोशिश

जब भी सिंहस्थ आता है तब योजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, परंतु सवाल यही रहता है कि यह करोड़ों रुपए आखिर जाते कहां हैं? क्योंकि धरातल पर तो वैसे कार्य दिखाई नहीं देते। यह करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं। ये रुपये आखिर कहां लगे इसका कोई पता नहीं चलता। एक बार फिर कहा जा रहा है कि सिंहस्थ को लेकर नई योजनाएं बनाई जाएंगी, जिसमें शिप्रा शुद्धिकरण भी शामिल है। अब भी क्या गारंटी है कि लगने वाले करोड़ों रुपए की क्या सार्थकता रहेगी ? स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है कि अधिकारी संतों को एक बार फिर झांसे में लेने की कोशिश कर रहे हैं।

क्षिप्रा को मैली होने से बचाने के लिए सांवराखेड़ी में होटल आदि की गंदी साजिश रचने वालों को भी रोकना होगा

उज्जैन के मास्टर प्लान में सिंहस्थ के उपयोग में आने वाली सांवराखेड़ी की जमीन को आवासीय करवाने की साजिश रची जा रही है। सांवराखेड़ी की जमीन और क्षिप्रा के तट पर होटल तथा अन्य निर्माण भी किए जाने की योजना चल रही है। यह बात पहले भी उठी थी कि क्षिप्रा के तट पर तथा सांवराखेड़ी में यदि कॉलोनी कटी या होटल आदि अन्य निर्माण हुए तो उसका मल-मूत्र, गंदा पानी भी शिप्रा नदी में ही मिलेगा। ऐसे में तो शिप्रा का जल और ज्यादा दूषित हो जाएगा। संत भी यही कह रहे हैं कि क्षिप्रा के पानी का शुद्धिकरण होना चाहिए, परंतु भूमाफिया जिस ढंग से सांवराखेड़ी की जमीन को आवासीय करने पर तुले हुए हैं , यदि वह कारगर हो गया तो साधु-संतों और शिप्रा के भक्तों का यह सपना भी अधूरा रह जाएगा कि क्षिप्रा का कभी शुद्धिकरण भी हो सकता है। तब तो क्षिप्रा और अधिक मैली हो जाएगी। यदि क्षिप्रा का शुद्धिकरण करना है तो सबसे पहले भूमाफियाओं और दौलत का ढेर खड़ा करने वाले की गंदी तमन्ना रखने वालों को रोकना होगा।