जोड़ना है जोड़ना है लोभ है और जोड़ न शौच है- मुनिश्री

उज्जैन । जहां जोड़ने की प्रवृत्ति है वहां लोभ है और जहां लोभ है वहां दुर्गति निश्चित है क्योंकि जोड़ने वाला लोभ के भार से भारी होता हुआ दुर्गति का ही पात्र बनता है। चाहे धन का लोभ हो, चाहे धर्म का लोभ हो या तन का लोभ हो, वह लोभ ही शौच धर्म से व्यक्ति को दूर कर रहा है। धन के लोभ में व्यक्ति पुण्य पाप के विवेक से भी रहित हो जाता है। लाभ जैसे जैसे बढ़ता है वैसे वैसे व्यक्ति लोभ में प्रवृत्त होता है क्योंकि 99 तो सबके पास है कमी मात्र एक की है और वह एक की कमी आज तक किसी की पूर्ण नहीं हुई।
मीडिया प्रभारी प्रदीप झांझरी ने बताया कि पर्वराज पर्युषण में उत्तम शौच धर्म के अवसर पर मुनिश्री सुप्रभसागर ससंघ के सानिध्य में चल रहे समयसारोपासक साधना संस्कार शिविर में आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिश्री ने ये उद्गार उद्यन मार्ग स्थित आनंद मंगल परिसर में व्यक्त किये। मुनिश्री ने कहा कि धन के लोभ में आसक्त हुआ व्यक्ति खाना पीना, माता-पिता, परिवार आदि सब संबंधों को भूल जाता है, धन के लोभ में बाप, बेटे को मार देता है, मां संतान को बेच देती है। ऐसा कहा भी जाता है कि बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा रूपैया, धर्म का लोभ जब व्यक्ति को सताता है तो वह धर्म की क्रिया करते हुए भी पाप कर लेता है, मैं धर्मात्मा कहलाउंगा इसके लोभ में दिखावा भी करता है और कषायों में लीन हो जाता है। तन का लोभ जब प्रकट होता है तो व्यक्ति सोचता है मैं बूढ़ा न हो जाउं इसलिए शरीर को संभालने का प्रयास करता है लेकिन धन्य है वे धरती के देवता निर्ग्रंथ मुनिराज जो सभी प्रकार के लोभ की प्रवृत्ति छोड़ते हुए उत्तम शौच धर्म को प्राप्त करते हैं।