April 27, 2024

समाजवादी चिंतक सुरेश खैरनार ने किया खबरदार

इंदौर। सांप्रदायिक राजनीति के उभार के लिए जहां वामपंथी समाजवादी आंदोलन से जुड़े राजनीतिक दलों की गलतियां जिम्मेदार हैं, वही बाबरी विध्वंस को सांप्रदायिक राजनीति का टर्निंग प्वाइंट मानने के बजाय शाहबानो प्रकरण को टर्निंग प्वाइंट माना जाना चाहिए। यदि उस वक्त कांग्रेस सहित तमाम धर्मनिरपेक्ष दल गलतियां नहीं करते तो संभव था कि आज भाजपा और अन्य सांप्रदायिक संगठन जिस ताकत में पहुंचे हैं, उसमें नहीं पहुंचते । यह विचार समाजवादी चिंतक और राष्ट्र सेवा दल के पूर्व अध्यक्ष डॉ सुरेश खैरनार ने इंदौर में व्यक्त किए।
वरिष्ठ समाजवादी चिंतक डॉ सुरेश खैरनार सांप्रदायिक राजनीति के खतरे और वामपंथी समाजवादी कार्यकर्ताओं का कर्तव्य विषय पर बोल रहे थे । उन्होने कहा कि आज सबसे ज्यादा खतरा सांप्रदायिकता और धर्मांधता का है और इसका मुकाबला धर्मनिरपेक्ष कार्यकर्ता ही कर सकते हैं।
खैरनार लंबे समय से सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और भागलपुर से लेकर गुजरात कश्मीर, मुंबई, सहित देश भर के 60 से ज्यादा दंगा ग्रस्त इलाकों में महीनों रहकर शांति स्थापित करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि मधु लिमए एकमात्र ऐसे नेता थे जिन्होंने समाजवाद को न केवल जिया बल्कि सांप्रदायिक राजनीति का खतरे को आज से 50 साल पहले भी महसूस किया था । 20 साल की उम्र में वे संविधान के प्रति लगाव और युद्ध के खिलाफ सार्वजनिक रूप से अभियान चलाने वाले नेता थे। उन्होंने अदालत में भी अंग्रेज सरकार का इसलिए विरोध किया कि उसने भारत पर युद्ध थोपा था ।