चार माह से इंदौर शहर अध्यक्ष तय नहीं कर पा रही कांग्रेस ,और दावा चुनाव जीतने का!

इंदौर। कांग्रेस पार्टी चुनावी वैतरणी पार करने के लिए भगवा चोले से लेकर मुफ्त के वादों तक सभी प्रयास आजमा रही है। नारी सम्मान योजना भी इसी कवायद का हिस्सा है। मुकाबला भाजपा के मजबूत संगठन से है, लेकिन इंदौर में पार्टी संगठन ही नेतृत्वहीन होने से अभियान भी भटके-भटके से नजर आते हैं। इंदौर में चार माह से शहर अध्यक्ष का पद खाली है।
इंदौर के लिए विनय बाकलीवाल को हटाकर अरविंद बागड़ी के नाम की घोषणा की गई थी, लेकिन एक दिन में अपने ही फैसले से पार्टी ने कदम पीछे खींच लिए। तब से अब तक शहर अध्यक्ष के लिए किसी का नाम पार्टी तय नहीं कर सकी। नतीजतन इस बीच प्रदेश कांग्रेस कमेटी द्वारा प्रस्तावित कई अभियान शहर में दम नहीं पकड़ सके। इनमें प्रियंका गांधी द्वारा प्रारंभ किया गया ‘हाथ से हाथ जोड़ो’ अभियान भी शामिल है। स्थानीय कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जब मन हुआ, तब अभियान में प्रतीकात्मक सहभागिता जरूर दिखाई। सक्रियता छोटे कार्यकर्ता और प्रवक्ताओं की ज्यादा दिखी।

फिर शुरू हुई सुगबुगाहट

शुक्रवार को इंदौर आए कमल नाथ अपने साथ विधायक संजय शुक्ला को भोपाल होते हुए गुवाहाटी लेकर गए। इंदौर शहर में कांग्रेस से वे अकेले विधायक हैं। शेष दो विधायक ग्रामीण क्षेत्र से हैं, जहां जिला अध्यक्ष की घोषणा हो चुकी है। ऐसे में शहर अध्यक्ष की घोषणा को लेकर अटकलें फिर तेज हो गई हैं। पार्टी में चर्चा है कि शहर अध्यक्ष का नाम तय हो चुका है। मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में सरकार गठन में व्यस्त होने से नाम की घोषणा रुकी हुई है।

गंभीर नहीं कांग्रेस

प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पहले भी इंदौर में पार्टी संगठन के प्रति गंभीर नजर नहीं आया। विनय बाकलीवाल तीन साल से ज्यादा तक शहर अध्यक्ष रहे, लेकिन तब शहर कार्यकारिणी का गठन नहीं किया गया। उनके साथ सात प्रवक्ता थे, जिनकी नियुक्ति भी भोपाल से हुई थी। शहर में कांग्रेस का कप्तान तो था, लेकिन टीम नहीं थी। बाकलीवाल के अकेले अध्यक्ष रहते विधानसभा और नगर निगम चुनाव हो गए। शहर के पुराने कांग्रेसी लगातार प्रदेश नेतृत्व को संगठन की कमजोरी के बारे में सूचित भी कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार हर विधानसभा में सेक्टर और मंडलम की सूची भी पूरी नहीं है।
गत दिनों इंदौर में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की मौजूदगी में नारी सम्मान योजना की शुरुआत की गई थी, लेकिन जिस शहर में योजना शुरू हो रही है पार्टी संगठन में उसका ही मुखिया मंच पर नहीं था।