ब्रह्मास्त्र इंदौर
मध्य प्रदेश में मतदाता सूची को लेकर स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर की प्रक्रिया पूरी तरह से पटरी से उतर गई है। इस महाअभियान में बूथ लेवल अधिकारी यानी बीएलओ को बिना गणना पत्रक (एन्यूमरेशन शीट) के ही मैदान में उतार दिया गया। दरअसल, इंदौर की जिस फर्म को गणना पत्रक छापने का टेंडर दिया गया, उसने समय पर इन्हें नहीं छापा। इसकी वजह से 4 नवंबर से शुरू हुआ डोर-टू डोर अभियान पिछड़ गया है।
जिस फर्म को ये ठेका मिला है, उसका कहना है कि जिलों के निर्वाचन कार्यालयों की तरफ से डेटा मांगा गया था। उन्होंने जानकारी समय पर नहीं दी। जिन्होंने जानकारी दी, वो भी आधी अधूरी दी। कई जिलों के अफसरों ने तो मतदाता सूची के बंडल ही गायब कर दिए। इंदौर के ही उदाहरण से समझें तो यहां 28.46 लाख से अधिक मतदाताओं का भौतिक सत्यापन किया जाना है। 4 नवंबर को अभियान की औपचारिक शुरूआत के साथ ही बीएलओ को घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क साधना था। ज्यादातर इलाकों में बीएलओ जब अपने क्षेत्र में निकले तो उनके हाथ में आधुनिक आईपैड तो था, मगर सबसे जरूरी गणना पत्रक और फॉर्म नदारद थे। बीएलओ को आईपैड और टैबलेट इसलिए दिया है, ताकि वे 2003 की पुरानी वोटर लिस्ट और 2025 की नई वोटर लिस्ट के डेटा का मिलान कर सके। चुनाव आयोग का नियम है कि बिना फॉर्म पर मतदाता के हस्ताक्षर के डेटा को ऐप में एंट्री नहीं किया जा सकता। ऐसे में कई बीएलओ को या तो अपना काम रोकना पड़ा या फिर पुराने ड्राफ्ट फॉर्म के सहारे अस्थायी रूप से जानकारी जुटानी पड़ी।
