खुसूर-फुसूर
सफाई सेना के कप्तान वाह भई वाह…
शहर ने पहली बार देखा की रातों रात उसके द्वारा किया गया कचरा सुबह सडकों से गायब था। पूरी तरह मुख्य सडकें क्लीन थी। रात की धींगा-मस्ती का कचरा भी साफ किया जा चुका था। रात को त्यौहार मनाकर जब शहर नींद के आगोश में चला गया तभी सफाई मित्रों की सेना ने कप्तान के नेतृत्व गंदगी एवं कचरे से लडकर युद्ध को जीत लिया था। सुबह जब आम रहवासी की आंख खुली तो उसने सडक पर देखकर आश्चर्य ही जताया। ये पहली बार ही हुआ की त्यौहार के साथ शहर की सफाई की रणनीति पर अहम एवं योजनाबद्ध अमल किया गया। खास यह रहा कि एक दिन पूर्व अपने ही वरिष्ठ साथी का अपमान होने के बावजूद भी पूरे अमले ने अपनी जिम्मेदारी को कप्तान के नेतृत्व में निर्वहन किया। युवा कप्तान ने जब से बागडौर संभाली है तब से बराबर देखा जा रहा है कि वे कहीं भी टीम का हौंसला कमजोर नहीं होने देते हैं। उत्साह के साथ ही वे सभी को प्रेरित करते हैं और जो गडबड करते हैं उनके लिए उनके पास इलाज का तरीका भी है। सफाई मित्रों ने एक बार फिर कप्तान के नेतृत्व में शहर के जिम्मेदारों को दिखा दिया है कि शहर की स्वच्छता को लेकर उनकी एकता के आगे कोई नहीं टिक सकता है। इस पूरे मामले में एक भी उदाहरण ऐसा सामने नहीं आ रहा है जहां जनप्रतिनिधियों ने रात्रि में गंदगी से जंग के लिए मैदान में उतरी सफाई मित्रों की सेना का उत्साह वर्धन करने के लिए कुछ किया हो या अपने क्षेत्रों में उनका स्वागत भर ही किया हो। अगर ऐसा हो जाता तो गंदगी से लडने वाली सेना का उत्साह दौहरा हो जाता। खुसूर-फुसूर है कि जिस सत्ता को रक्षक की भूमिका में होना चाहिए वही प्रताडित करने की स्थिति में उतर जाए तो फिर उससे उम्मीद नहीं रहती है। वो तो कप्तान ने ही उत्साह भी बनाए रखा और अपमान के घूंट को पीकर भी आमजन के लिए कैसे काम किया जाता है इस सकारात्मकता का भी संदेश दिया है।
