उज्जैन हादसा: ‘बेटी नहीं बेटा थी आरती’, 7 भाइयों की इकलौती बहन की शहादत पर पूरे परिवार की आंखें नम
उज्जैन में 6 सितंबर की रात हुए दर्दनाक हादसे ने पूरे पुलिस महकमे और परिवार को गहरे सदमे में डाल दिया। शिप्रा नदी में गिरी कार में सवार तीन पुलिसकर्मियों में से कॉन्स्टेबल आरती पाल (40) का शव 68 घंटे बाद मंगलवार को मिला। रतलाम की रहने वाली आरती का अंतिम संस्कार बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ किया गया। छोटे भाई लोकेंद्र पाल ने मुखाग्नि दी।
परिवार का सहारा थी आरती
आरती सात भाइयों की इकलौती बहन थीं। मां शीला पाल ने नम आंखों से कहा – “वह हमारी बेटी नहीं, बेटा थी। पूरे परिवार का सहारा थी, हमेशा मुस्कुराकर हौसला देती थी।”
आरती अपनी काकी को मां जैसा मानती थीं और हर छोटी-बड़ी बात उन्हीं से साझा करती थीं।
भाई के तेरहवीं पर आई थी घर
30 जुलाई को बड़े भाई जितेंद्र पाल (45) का बीमारी से निधन हो गया था। इसके बाद 4 सितंबर को सवा माह की रस्मों के लिए आरती रतलाम आई थीं। परिवार संग बैठते हुए उन्होंने वादा किया था कि “नवमी को दादाजी के श्राद्ध में जरूर आऊंगी।” लेकिन किसे पता था कि यह उनका आखिरी मिलन होगा।
2012 में जॉइन की थी पुलिस सेवा
आरती ने 2012 में पुलिस विभाग जॉइन किया था। पहली पोस्टिंग उज्जैन के महाकाल थाने में मिली। पिछले चार साल से वे उन्हेल थाने में पदस्थ थीं।
ड्यूटी के प्रति समर्पण इतना था कि उन्होंने शादी नहीं की और जीवन को पूरी तरह सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
परिवार और सपने
आरती का परिवार रतलाम के अरिहंत परिसर में रहता है। पिता अशोक कुमार पाल कलेक्ट्रेट से रिटायर्ड अधीक्षक हैं, मां शीला गृहिणी। छोटा भाई लोकेंद्र स्टाम्प वेंडर हैं।
मकान भी पिता ने आरती के नाम कर रखा था। परिवार और रिश्तेदार कहते हैं कि “दीदी हमेशा हर मुश्किल में हमारे लिए खड़ी रहती थीं।”
राजकीय सम्मान के साथ विदाई
उज्जैन में पूरे राजकीय सम्मान के साथ आरती को अंतिम विदाई दी गई। शोकाकुल माहौल में जब भाई लोकेंद्र ने मुखाग्नि दी, तो परिवार और रिश्तेदारों की आंखें भर आईं।
पुलिस विभाग के अफसरों ने भी आरती की सेवा और कर्तव्यनिष्ठा को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
