करोड़ों का बजट है लेकिन खर्च करने के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं
ब्रह्मास्त्र उज्जैन
भले ही सूबे की सरकार मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए तमाम प्रयास कर रही हो लेकिन बावजूद इसके मृत्यु दर में प्रभावी सुधार नहीं हो सका है। उज्जैन जिले सहित पूरे प्रदेश भर में मातृ मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर जैसे सूचकांक सुधारने पर वर्ष 2024-25 में 3531 करोड़ रुपए का बजट खर्च किया है, जबकि वर्ष 2025-26 के लिए एनएचएम को 4418 करोड़ का बजट स्वीकृत किया। इतने खर्च के बावजूद अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।
एमएमआर कम करने एएनसी पंजीयन, प्रसव पूर्व चार जांचें, एनीमिया रोकथाम, जेस्टेशनल डायबिटीज की स्क्रीनिंग जैसे उपाय किए जा रहे हैं। शासकीय मेडिकल कॉलेजों में एडवांस स्किल लैब, आॅब्स्टेट्रिक आईसीयू, राज्य मिडवाइफरी प्रशिक्षण संस्थान की शुरूआत, बर्थ वेटिंग होम और सुमन कार्यक्रम का संचालन जैसे कई प्रयास किए जा रहे हैं।
रजिस्ट्रार जनरल आॅफ इंडिया के मैटरनल मोर्टालिटी पर जारी एसआरएस के स्पेशल बुलेटिन 2020-22 में खुलासा हुआ है कि जिले सहित प्रदेश में प्रति एक लाख जीवित जन्म देने वाली गर्भवती महिलाओं में से 169 की मौत हो रही है, जो देश में सर्वाधिक है। दरअसल, मप्र में मातृ मृत्यु दर अब भी 169 प्रति लाख है, जो राष्ट्रीय औसत 88 से काफी ज्यादा है। आंकड़े चिंताजनक इसलिए भी हैं क्योंकि प्रसूताओं की मौत में मप्र देश में तीसरे स्थान पर है। वहीं, शिशु मृत्यु दर की बात करें तो 1 हजार नवजात में से 35 की मौत हो जाती है। सरकार का लक्ष्य है कि बर्थ वेटिंग होम जैसी योजनाओं से स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जाए और मृत्यु दर में कमी लाई जाए। प्रदेश में प्रति 1 लाख में से 3500 नवजात और 169 प्रसूताएं प्रसूताएं जिंदा नहीं बचतीं। यह राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है।
