April 26, 2024

बनाने में ही लग जाएंगे सालों साल, नहर बनेगी या नहीं यह तो वक्त बताएगा, परंतु तब तक दब जाएगा मुद्दा

कच्ची मिट्टी का डैम बना करोड़ों रुपए बहा रहे पानी में

उज्जैन। साधु-संतों एवं प्रदेश सरकार के बीच तनातनी का मुद्दा बनी खान नदी के गंदे पानी के शिप्रा में निरंतर ‍मिलने का स्थाई हल खोजने के लिए जलसंसाधन विभाग की रातों की नींद उडी हुई है। सिंहस्थ 2016 में बनी खान डायवर्शन योजना के फेल हो जाने के बाद सरकार को अब एक मात्र विकल्प नहर ही नजर आ रहा है। हालांकि वक्ती तौर पर तो यह विकल्प भी कारगर नहीं है। दो सिंहस्थ को ध्यान में रखकर ही अगली योजना की तैयारी की जा रही है। इस पर भी जलसंसाधन विभाग चीटी की चाल से चल रहा है।
दो सिंहस्थ को ध्यान में रखकर बनाई जा रही इस योजना में षड्यंत्र की बू आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि “चतुर- सुजान उज्जैनी राजनीतिज्ञ” फिलहाल इस बड़े मुद्दे और समस्या से ध्यान भटकाने के लिए नित नए प्रयोग करवा रहे हैं। पहला सवाल तो यह है कि यदि इस समस्या का हल नहीं सूझ रहा है तो बरसों से कच्चे डैम क्यों बना रहे हैं? एक बार फिर अस्थाई तौर पर कच्चे डैम बनाए जा रहे हैं। कच्चे डैम के नाम पर ही अब तक करोड़ों रुपए पानी में बहाए जा चुके हैं। डैम बनता है और पानी में बह जाता है। डैम के बहाने जनता के खून पसीने की कमाई से सरकारी खजाने में पहुंचे रुपये बर्बाद हो जाते हैं। यह अच्छी तरह मालूम है कि कच्चा मिट्टी का डैम नदी में टिक नहीं पाएगा , फिर भी बार-बार यही डैम बना कर भ्रष्टाचार का डैम मजबूत होता रहता है। दूसरी अहम बात यह भी है कि समस्या अभी है तो इसका निदान भी अभी होना चाहिए। इसकी बजाय ऐसी योजनाएं बनाई जा रही हैं, जो सालों साल चले। अब आने वाला वक्त किसने देखा। संतों की नाराजगी दूर करने के लिए फिलहाल नहर का “टोटका” किया जा रहा है और राजनीति का ऐसा मंत्र फूंका जा रहा है जिससे साधु-संत फिलहाल संतुष्ट भी हो जाएं और इस समस्या का हल भविष्य पर डाल दिया जाए। जाहिर है यदि नहर परियोजना अमल में लाई जाती है, तो उसे लंबा वक्त लगेगा। यह भविष्य किसने देखा ? “उज्जैनी सरकार” ऐसा करके दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती है। वह अच्छी तरह जानती है कि आने वाले समय में नहर बने या ना बने, यह मुद्दा जरूर दब जाएगा और फिलहाल साधु संतों की नाराजगी से भी वे बच जाएंगे।
इंदौर से उज्जैन आ रही खान नदी का गंदा पानी मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के पानी में आए दिन मिलने से शिप्रा स्नान एवं उसके पानी के आचमन योग्य भी नहीं रहने के कारण साधु -संत नाराज हैं। इसी नाराजी को लेकर संतों ने पिछले दिनों धरना शुरू कर दिया था। जैसे- तैसे संतों को मनाकर राज्य शासन ने धरना आंदोलन स्थगित करवाया था। संतों ने इंदौर में खान के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया था। इंदौर प्रशासन ने संतों की नाराजगी को देखते नदी में गंदा पानी उलीचने वाले उघोगों पर कार्रवाई शुरू कर दी।उज्जैन में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट संतों को साथ लेकर बैठे और प्रशासनिक स्तर पर विचार विमर्श किया था। मंत्री सिलावट ने साधु-सन्तों से मुलाकात की और उन्हें आश्वस्त किया कि खान नदी का जो गंदा पानी शिप्रा नदी में जाकर मिल रहा है, उसके लिये मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान गंभीर हैं एवं इसके समाधान के लिये सभी प्रयास किये जा रहे हैं। श्री सिलावट ने साधु-सन्तों से कहा कि आप लोग आन्दोलन करेंगे तो यह हमारे लिये चिन्ता का विषय है। आपकी भावना एवं संकल्प के लिये सरकार सजग एवं संवेदनशील है। खान नदी के गन्दे पानी को शिप्रा में जाने से रोकने के लिये सभी प्रयास किये जायेंगे। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है, लेकिन इस चुनौती से सफलतापूर्वक निपटा जायेगा। श्री सिलावट ने बताया कि इन्दौर में 13 ऐसी फैक्टरियों को बन्द किया गया है, जिनका गंदा पानी खान नदी में जाता था। उन फैक्टरी मालिकों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जायेगी। उज्जैन, देवास एवं इन्दौर के लिये विशेष कार्य योजना बनाई जायेगी। श्री सिलावट ने कहा कि खान नदी के गन्दे पानी को शिप्रा में मिलने से रोकने के लिये स्थाई हल निकाला जाएगा। सर्वसंत समाज की ओर से महन्त रामेश्वरदास ने उन्हें अवगत कराया था कि संत समाज का मुख्य उद्देश्य है कि शिप्रा का पानी स्वच्छ रहे और आचमन के योग्य रहे। शिप्रा नदी का धार्मिक महत्व है। बारह वर्ष में एक बार यहां सिंहस्थ का मेला लगता है। उन्होंने वाटर ट्रीटमेंट का पानी भी शिप्रा में न मिलाने का अनुरोध किया। संत समाजजनों ने अनुरोध किया था था कि शनि मन्दिर से लेकर कालियादेह तक 13 किलो मीटर लम्बी नदी का तकनीकी अध्ययन कर शिप्रा शुद्धिकरण का स्थाई हल करे। लगता है कि सरकार और साधु-संतों के बीच मध्यस्थता करने वाले”उज्जैनी कर्ता-धर्ता” ने सिलावट को भी अपने सांचे में ढालकर (राजनीतिक) नहर का गणित समझा दिया है, जिसे हल करने में सालों-साल लग जाएंगे।

खान डायवर्शन पर उठे सवाल-

सिंहस्थ- 2016 के पूर्व शिप्रा में मिल रहे खान के पानी को रोकने के लिए खान डायवर्शन योजना बनाई गई थी। इसमें मानसून के 4 माह को छोडकर शेष 8 माह खान नदी में इंदौर से आने वाला पानी पाईप लाईन के सहारे राघौपिपल्या से सीधे कालियादेह पैलेस के पास ले जाने की योजना को अमल रूप दिया गया। दिल्ली की एक फर्म को इसका ठेका दिया गया।भू-तल की गहराई में पाईप लाईन खुदाई कर डाली गई। तत्कालीन स्थिति में ही तकनीकी जानकारों का कहना था कि यह योजना मात्र दो-चार सालों में ही ध्वस्त हो जाएगी। जैसे जैसे पानी का उपयोग इंदौर में बढ़ेगा, वैसे- वैसे खान में पानी की आवक बढ़ेगी। हुआ भी यही। पिछले 5 साल में ही खान नदी में इंदौर से आने वाले पानी की क्षमता बढ़कर 3 गुना के करीब पहुंच गई है।डायवर्शन लाईन एवं इंदौर के ट्रीटमेंट प्लांट भी सांस भरने लगे हैं। पानी की गाद एवं मिट्टी भी इस दरमियान पाईप लाईन को धीरे- धीरे बराबर करने में लगी हुई है।राघौपिपल्या स्टाप डेम से पानी की आवक सीधे शिप्रा की ओर अधिक रहती है , जबकि डायवर्शन लाईन की और कम।

नहर का विकल्प भी आसान नहीं

लोगों का मानना है कि नहर का विकल्प भी आसान नहीं है, परंतु राजनीतिक कर्ता-धर्ता फिलहाल नहर पर जोर देकर राजनीतिक तौर पर इस समस्या से बचने का उपाय ढूंढ रहे हैं।

Box

अब 25 वर्ष के लिए स्थाई निदान की बात कही जा रही

जल संसाधन विभाग के कार्यपालन यंत्री कमल कुवाल के अनुसार वर्तमान में खान का पानी शिप्रा में न मिले इसके लिए दो कच्चे डेम का निर्माण किया जा रहा है। एक डेम त्रिवेणी के समीप है, जिसका रिपेयरिंग काम शुरू किया गया है। इसके साथ ही राघौ पिपल्या के नजदीक एक डेम और बनाया जा रहा है। इसके साथ ही शासन निर्देशानुसार आगामी 25 वर्ष अर्थात दो सिंहस्थ को देखते हुए स्थाई निदान के लिए भी काम शुरू किया जा रहा है। उनका मानना कि स्थाई निदान के लिए नहर ही विकल्प है। इसी पर ध्यान दिया जा रहा है,लेकिन उसके लिए आनलाईन गूगल सर्वे किया जाएगा। उसके बाद ही इस पर आगे काम किया जा सकेगा। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि खान डायवर्शन पाईप लाईन प्रोजेक्ट के समय और वर्तमान में इंदौर से खान में आ रहे पानी में तीन गुना के लगभग बढ़ोतरी हुई है। इसके चलते खान डायवर्शन पाईप लाईन से आने वाले पानी को मानसून के चार माह छोड़कर भी डायवर्ट किया जाना संभव नहीं है। श्री कुवाल ने बताया कि खान डायवर्शन पाईप लाईन प्रोजेक्ट का टेंडर करीब 79 करोड़ के लगभग का था एवं पाईप लाइन राघौपिपलिया से कालियादेह पैलेस करीब 18 किलोमीटर से अधिक है।