खुसूर-फुसूर
नासिक कुंभ का आगाज
कुंभ एवं सिंहस्थ मेले का आयोजन देश के चार स्थानों पर होता है। 12 वर्ष के दौरान हर तीसरे वर्ष इनमें से एक स्थान पर सनातनधर्मियों का यह आयोजन होता है। इस आयोजन में सनातनी 13 अखाडों के संत,अनुयायी शामिल होते हैं। पुरातन काल से ही यह व्यवस्था चली आ रही है। कुछ स्थानों पर अर्द्घ कुंभ का आयोजन भी होता है। इनमें से एक कुंभ महाराष्ट्र के नासिक एवं त्रयंबकेश्वर में होता है। सिंहस्थ से पूर्व यहां आयोजन होता है उसके बाद यह सनातनी आयोजन शिप्रा तट पर सिंहस्थ के रूप में होता है। नासिक कुंभ का महाराष्ट्र में आगाज करते हुए इसके आयोजन की तारीखों की घोषणा कर दी गई है। यानिकी उज्जैन के आयोजन के लिए तैयारियों की गति तेज करने का समय भी अघोषित रूप से शुरू हो गया है। कुल जमा यूं देखें तो अभी तीन साल का समय उज्जैन के आयोजन में है लेकिन मार्च,अप्रेल,मई भरी गर्मी के इन तीन माह में इसका आयोजन होता है। इसकी तैयारियों की विस्तृत स्थिति को देखा जाए तो ये समय भी काफी कम नजर आता है। इन तीन सालों में से मानसून के हर वर्ष 4 माह की स्थिति के मान से 12 माह में से कभी काम चल सका कभी नहीं के हाल पानी बरसेगा तो रहेंगे ही। इस नजरिये से देखा जाए तो कुल जमा 27 माह का समय ही शेष बचता है। दिसंबर 27 से सिंहस्थ नगरी के लिए हर हाल में आगाज किया जाएगा। उससे पूर्व बहुतेरे काम पूर्ण करने होंगे ओैर तैयारियों को अंजाम सुरक्षित रूप से देना होगा। खुसूर-फुसूर है कि इस बार शिप्रा के जल में स्नान होने की तैयारी तो तकरीबन हो गई है। घाटों के निर्माण उसकी गति पर निर्भर करते हैं कि 29 किलोमीटर के घाट बन सकेंगे या नहीं। इनके अलावा भी बहुत से कामों को लेकर अभी भी विभागों में स्पष्ट स्थितियों का अभाव है। समय जैसे –जैसे बढेगा वैसे –वैसे ही काम को लेकर तनाव भी बढना तय है। एक समय बाद काम जल्दबाजी में होंगे। तमाम कागजी कमियां रहेंगी,इनका लाभ भी अवसरवादी लेंगे ही। इसके चलते आयोजन की रूप रेखा की उल्टी गिनती का सायरन बजाते हुए आवश्यकता के कामों की योजना तत्काल लेते हुए उस पर निर्णय किए जाने चाहिए।
