खुसूर-फुसूर
कुंभकर्णी नींद, जगाना मुश्किल…
शहर में पिछले लंबे समय से कुंभकर्णी नींद में सो रहे ऐसे लोगों को जगाना मुश्किल हो रहा है जो चंद रूपयों की बचत के लालच में समाज में डिस्पोजेबल में भरकर जहर परोस रहे हैं। इसे लेकर कई बडे कैंसर विशेषज्ञ एवं बडे चिकित्सक बार-बार लोगों को जगा रहे हैं कि डिस्पोजेबल का उपयोग किसी हालत में न करें। चाय में तो कतई इसका उपयोग नहीं किया जाए ,उसके बाद भी शहर भर की दुकानों में एक तरफा इसका उपयोग धडल्ले से चल रहा है। शहर सरकार के प्रशासनिक नए मुखिया ने आते ही इस पर वार किया था। पता नहीं क्यों बाद में वे इस मामले में ठंडे हो गए और शहर सरकार के मित्रों की कार्रवाई भी ठंडी हो गई। शहर सरकार के मुखिया ने भी इसे लेकर पूर्व में एवं एक बार फिर से आमजन से अपील की है लेकिन उपयोग करने वाले कुंभकर्णी नींद से जागने को ही तैयार नहीं है। शहर में बराबर इसका उपयोग दिन प्रति दिन बढता ही जा रहा है। कार्रवाई यूं कहें की उंट के मुंह में जीरे जैसी ही है। वैसे भी पर्यावरण से जुडा यह मामला कार्रवाई से कम और जन जागरूकता का ज्यादा है। इसका उपयोग सर्वाधिक छोटी मोटी दुकानों पर ज्यादा हो रहा है। खास तो यह है कि जैसे तो इसमें पेय पदार्थ परोसने वाले और वैसे ही इसमें पेय पदार्थ का उपयोग करने वाले। एक का आग्रह तो दुसरे का स्वीकार्य से ये मसला चल रहा है। न तो आग्रह वाला इस परेशानी को त्यागना चाह रहा है न ही स्वीकार्य करने वाला इसे लेकर इंकार कर रहा है। खुसूर-फुसूर है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में शहर में डिस्पोजेबल से मिलने वाली बीमारी के मरीजों की गणना का हाल क्या होगा। शहर के आमजन के स्वास्थ्य को लेकर नगर सरकार को इस मामले में अब अपील,आग्रह से आगे बढकर कडे निर्णय की और कदम बढाना चाहिए।
