उज्जैन में बछ बारस पर मटकी फोड़ उत्सव, श्री द्वारकाधीश मंदिर में बाल कृष्ण ने फोड़ी 10 फीट ऊंची माखन मटकी
उज्जैन में बछ बारस के अवसर पर धार्मिक उत्साह का अनोखा नज़ारा देखने को मिला। श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में विशेष आयोजन किया गया, जहां बालकृष्ण के रूप में सजे एक छोटे बालक ने 10 फीट ऊंची माखन मटकी फोड़ी। यह आयोजन दोपहर 12 बजे हुआ और मटकी टूटते ही मंदिर परिसर “नंद के आनंद भयो” और “जय कन्हैयालाल की” के जयकारों से गूंज उठा।
जैसे ही माखन मटकी टूटी, भक्तों ने मिश्री, धानी और माखन का प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान मंदिर के पुजारी पावन शर्मा और ट्रस्ट के पदाधिकारी मौजूद रहे।
परंपरा और विशेषता
मंदिर की परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी के बाद लगातार चार दिन रात में शयन आरती नहीं होती। मान्यता है कि इस अवधि में भगवान के सोने-जागने का समय निश्चित नहीं रहता। पांचवें दिन बछ बारस पर मटकी फोड़ने के बाद ही भगवान शयन करते हैं। यही कारण है कि साल में सिर्फ एक बार बछ बारस के दिन दिन में शयन आरती की जाती है।
इस अवसर पर भगवान की चांदी की पादुका काउज्जैन में बछ बारस पर मटकी फोड़ उत्सव, श्री द्वारकाधीश मंदिर में बाल कृष्ण ने फोड़ी 10 फीट ऊंची माखन मटकी
उज्जैन में बछ बारस के अवसर पर धार्मिक उत्साह का अनोखा नज़ारा देखने को मिला। श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में विशेष आयोजन किया गया, जहां बालकृष्ण के रूप में सजे एक छोटे बालक ने 10 फीट ऊंची माखन मटकी फोड़ी। यह आयोजन दोपहर 12 बजे हुआ और मटकी टूटते ही मंदिर परिसर “नंद के आनंद भयो” और “जय कन्हैयालाल की” के जयकारों से गूंज उठा।
जैसे ही माखन मटकी टूटी, भक्तों ने मिश्री, धानी और माखन का प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान मंदिर के पुजारी पावन शर्मा और ट्रस्ट के पदाधिकारी मौजूद रहे।
परंपरा और विशेषता
मंदिर की परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी के बाद लगातार चार दिन रात में शयन आरती नहीं होती। मान्यता है कि इस अवधि में भगवान के सोने-जागने का समय निश्चित नहीं रहता। पांचवें दिन बछ बारस पर मटकी फोड़ने के बाद ही भगवान शयन करते हैं। यही कारण है कि साल में सिर्फ एक बार बछ बारस के दिन दिन में शयन आरती की जाती है।
इस अवसर पर भगवान की चांदी की पादुका का पूजन भी किया गया।
शहरभर में पूजन और व्रत
उज्जैन के अन्य मंदिरों, आश्रमों और गोशालाओं में भी बछ बारस पर परंपरागत पूजन हुआ। महिलाओं ने गाय और बछड़ों का पूजन कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। परंपरा के अनुसार, इस दिन महिलाएं गेहूं या अन्य अनाज का उपयोग नहीं करतीं, बल्कि मक्का और ज्वार के आटे से बनी रोटी का सेवन करती हैं। व्रती महिलाएं कथा श्रवण के बाद ही व्रत खोलती हैं।
👉 बछ बारस पर हुए इस भव्य आयोजन ने श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक आनंद दिया बल्कि परंपराओं से भी जोड़े रखा।पूजन भी किया गया।
शहरभर में पूजन और व्रत
उज्जैन के अन्य मंदिरों, आश्रमों और गोशालाओं में भी बछ बारस पर परंपरागत पूजन हुआ। महिलाओं ने गाय और बछड़ों का पूजन कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। परंपरा के अनुसार, इस दिन महिलाएं गेहूं या अन्य अनाज का उपयोग नहीं करतीं, बल्कि मक्का और ज्वार के आटे से बनी रोटी का सेवन करती हैं। व्रती महिलाएं कथा श्रवण के बाद ही व्रत खोलती हैं।
👉 बछ बारस पर हुए इस भव्य आयोजन ने श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक आनंद दिया बल्कि परंपराओं से भी जोड़े रखा।
