उज्जैन का हरसिद्धि शक्तिपीठ: तंत्र साधना और दीपमालिका की अद्भुत परंपरा
उज्जैन
शारदीय नवरात्र के पहले दिन उज्जैन का प्राचीन हरसिद्धि शक्तिपीठ श्रद्धालुओं की भीड़ से सराबोर हो गया। अनुमान है कि आज यहां एक लाख से अधिक भक्त माता हरसिद्धि के दर्शन करेंगे। यह मंदिर करीब 2000 साल पुराना माना जाता है और यहां आज भी तांत्रिक साधक तंत्र सिद्धि करते हैं।
पौराणिक मान्यता
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यहां माता सती की कोहनी गिरी थी, इसी कारण इसे शक्तिपीठ माना जाता है।
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सम्राट विक्रमादित्य और कवि कालिदास की साधना स्थली भी यही मंदिर रहा है।
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चंड-मुंड राक्षसों का वध कर देवी चंडी को ‘हरसिद्धि’ नाम से स्थापित किया गया।
मंदिर की विशेषताएं
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नवरात्रि में यहां शयन आरती नहीं होती और गर्भगृह में प्रवेश वर्जित रहता है।
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रजत मुखौटे के दर्शन भक्तों को कराए जाते हैं।
दीपमालिका की परंपरा
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मंदिर में 51 फीट ऊंचे दो दीप स्तंभ हैं जिन पर कुल 1011 दीपक रोजाना जलाए जाते हैं।
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महज 5 मिनट में दीप प्रज्ज्वलित करने का अद्भुत दृश्य भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
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दीप जलाने का खर्च करीब 15 हजार रुपए आता है और बुकिंग दिसंबर 2025 तक फुल हो चुकी है।
नवरात्र में प्रसाद और भंडारे
दान से होने वाली आय से मंदिर में नवरात्र के दौरान साबूदाने की खिचड़ी और फरियाली खीर का प्रसाद प्रतिदिन वितरित किया जाता है।
👉 हरसिद्धि मंदिर नवरात्रि के इन दिनों में भक्ति, साधना और तंत्र परंपरा का अद्भुत संगम बन जाता है।
