इंदौर के एमवाय अस्पताल में चूहों का आतंक : नवजात की मौत के बाद खुली व्यवस्थाओं की पोल

इंदौर के एमवाय अस्पताल में चूहों का आतंक : नवजात की मौत के बाद खुली व्यवस्थाओं की पोल

घटना से शुरू हुआ हंगामा

इंदौर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल, महाराजा यशवंतराव (एमवाय) हॉस्पिटल, एक बार फिर चर्चाओं में है। हाल ही में अस्पताल के NICU (नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई) में चूहों ने दो नवजात शिशुओं के हाथ और कंधे कुतर डाले, जिनमें से एक की मौत हो गई। यह घटना सिर्फ एक दर्दनाक हादसा नहीं है, बल्कि अस्पताल की जर्जर व्यवस्थाओं और लापरवाही का आईना भी है।

वीडियो सामने आने के बाद मामला और गरमाया। इसमें साफ दिखा कि कैसे एक बड़ा चूहा NICU के इन्क्यूबेटर में घुस आया। सवाल उठता है – जिस जगह नवजातों को संक्रमण से बचाने के लिए सबसे सुरक्षित वातावरण होना चाहिए, वहां चूहों की आवाजाही कैसे संभव है?


क्यों बढ़ रही है चूहों की संख्या?

अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि बारिश के चलते चूहों के बिलों में पानी भर गया और वे बाहर निकलकर वार्डों में घूम रहे हैं। लेकिन असली वजह इससे कहीं गहरी है।

  1. पर्याप्त भोजन की उपलब्धता – मरीजों के परिजन वार्ड तक खाना लेकर आते हैं, जिससे चूहों को आसानी से भोजन मिल जाता है।

  2. अस्पताल का स्ट्रक्चर – आसपास की झाड़ियां और पुराने भवन चूहों के लिए स्थायी ठिकाना बने हुए हैं।

  3. दवाइयां और ग्लूकोज – वेटरनरी एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मेडिसिन और ग्लूकोज चूहों को अतिरिक्त ऊर्जा देते हैं, जिससे उनकी ब्रीडिंग क्षमता और तेजी से बढ़ती है।


चूहों की ब्रीडिंग: एक खतरनाक चक्र

गवर्नमेंट वेटरनरी कॉलेज महू के प्रोफेसर डॉ. संदीप नानावटी बताते हैं कि डोमेस्टिक चूहा (Rattus norvegicus) महज 42 दिन में ब्रीडिंग के लिए तैयार हो जाता है। मादा का गर्भकाल 21 दिन का होता है और वह एक बार में 9 से 12 बच्चे जन्म देती है।
इस हिसाब से एक जोड़ी चूहों से सालभर में 125 से ज्यादा चूहे पैदा हो सकते हैं। यानी अगर इन्हें नियंत्रित नहीं किया गया तो कुछ ही महीनों में इनकी संख्या सैकड़ों में पहुंच जाती है।


प्रशासनिक कार्रवाई: जिम्मेदारी से बचाव या समाधान?

घटना के बाद स्वास्थ्य विभाग ने नर्सिंग सुपरिटेंडेंट को हटाने, दो नर्सिंग ऑफिसर्स को सस्पेंड करने और अन्य कर्मचारियों को शोकॉज नोटिस जारी करने की कार्रवाई की।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या सिर्फ स्टाफ पर कार्रवाई कर देने से समस्या खत्म होगी? असल मुद्दा तो अस्पताल परिसर में चूहों की बेतहाशा बढ़ती संख्या और पेस्ट कंट्रोल की नाकामी है।


अतीत से सबक: 1994 और 2014 का ‘चूहा मारो अभियान’

यह समस्या नई नहीं है।

  • 1994 में तत्कालीन कलेक्टर डॉ. सुधीरंजन मोहंती ने एमवाय अस्पताल में बड़े स्तर पर पेस्ट कंट्रोल कराया था। तब अस्पताल को 10 दिन के लिए खाली कराया गया और करीब 12 हजार चूहे मारे गए।

  • 2014 में भी पेस्ट कंट्रोल से 2500 चूहे खत्म किए गए थे।

आज हालत फिर वैसी ही हो गई है। सवाल उठता है – हर 10–15 साल में बड़े अभियान की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या अस्पताल प्रबंधन नियमित रूप से इस समस्या से निपटने में असफल हो रहा है?


स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल

इंदौर का एमवाय अस्पताल सिर्फ शहर का ही नहीं, पूरे मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहां रोजाना हजारों मरीज इलाज कराने आते हैं। ऐसे में बुनियादी स्वच्छता और सुरक्षा का अभाव राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर गहरे सवाल खड़े करता है।

चूहों का मरीजों के वार्ड और खासकर NICU तक पहुंच जाना इस बात का सबूत है कि अस्पताल में इंफेक्शन कंट्रोल की पॉलिसी सिर्फ कागजों में है।


एक्सपर्ट्स की राय: कैसे मिल सकता है समाधान

  1. निरंतर पेस्ट कंट्रोल – एक्सपर्ट्स मानते हैं कि 15 दिन में एक बार औपचारिक पेस्ट कंट्रोल काफी नहीं है। इसे ज्यादा वैज्ञानिक और नियमित तरीके से करना होगा।

  2. खाद्य सामग्री पर रोक – अस्पताल में मरीजों के परिजनों को खाने-पीने की चीजें अंदर लाने पर सख्त रोक लगानी होगी।

  3. इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार – चूहों के बिल और रास्तों को पूरी तरह बंद करना होगा। NICU में अस्थायी प्लाई लगाकर रास्ते बंद करने की कोशिश तो हुई है, लेकिन स्थायी समाधान जरूरी है।

  4. जनजागरूकता और निगरानी – अस्पताल स्टाफ और परिजनों दोनों को यह समझाना होगा कि लापरवाही कितनी खतरनाक साबित हो सकती है।


निष्कर्ष: इंसानों के अस्पताल में जानवरों का राज?

एक ओर इंदौर को स्वच्छता सर्वेक्षण में लगातार ‘क्लीन सिटी’ का खिताब मिलता है, वहीं दूसरी ओर राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में चूहों का आतंक मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहा है।

यह मामला सिर्फ एक अस्पताल की समस्या नहीं है, बल्कि पूरे हेल्थ सिस्टम के लिए चेतावनी है। अगर अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में ऐसे हादसे दोहराए जाते रहेंगे।

सरकार और प्रशासन को समझना होगा कि अस्पताल केवल इलाज का केंद्र नहीं, बल्कि जीवन की अंतिम उम्मीद होते हैं। और अगर वहां भी चूहों का राज हो, तो यह समाज और व्यवस्था – दोनों की नाकामी है।


📌 लेखक की टिप्पणी
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि “हमारे अस्पताल कितने सुरक्षित हैं?” यह सिर्फ चूहों को मारने का मामला नहीं है, बल्कि पूरे सिस्टम को बदलने की आवश्यकता है।


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