उज्जैन। एक महत्वपूर्ण विकास में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने उज्जैन की हाई प्रोफाइल वक्फ संपत्ति धोखाधड़ी मामलों की जल्द से जल्द जांच पूरी करने का निर्देश ऑर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को दिया है।
यह आदेश माननीय न्यायमूर्ति श्री प्रणय वर्मा ने Writ Petition नंबर 40406/2024 में पारित किया। यह याचिका शिकायतकर्ता कासिम अली ने December, 2024 दायर की थी, जिसकी लंबी पैरवी उनके अधिवक्ता, इब्राहिम कन्नोदवाला ने की, जो उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में एक विख्यात वकील हैं। न्यायालय ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 173(1) के अनिवार्य प्रावधानों के तहत, अपराध क्रमांक 40/2024 और 41/2024 की जांच बिना किसी देरी के पूरी करने का निर्देश दिया है।यह निर्देश एक बार फिर उन दो एफआईआर पर ध्यान केंद्रित करता है, जो 25 सितंबर, 2024 को दर्ज की गई थी और जिनमें दाऊदी बोहरा समुदाय की उज्जैन स्थित मूल्यवान वक्फ संपत्तियों की बिक्री में परिष्कृत धोखाधड़ी का आरोप है। आरोपी, मुल्ला हसन नवाब और शब्बीर भाई पालनपुरवाला, जो संपतियों के संरक्षक थे, पर 2015 में एमपी वक्फ बोर्ड के जाली अनुमति पत्र का उपयोग कर बिक्री विलेख निष्पादित करने का आरोप है।
लंबित चल रही जांच पर सवाल
अपराध की गंभीरता जिसमें धोखाधड़ी (420 आईपीसी), आपराधिक षड्यंत्र (120बी आईपीसी), मूल्यवान सुरक्षा की जालसाजी (467, 468 आईपीसी), और आपराधिक विश्वासघात (409 आईपीसी) जैसे आरोप शामिल हैं के बावजूद, ईओडब्ल्यू उज्जैन ने एफआईआर दर्ज होने के 13 महीने बाद भी कोई खास प्रगति नहीं दिखाई है।
1. उज्जैन की सत्र अदालत ने उनकी अग्रिम जमानत की अर्जियां खारिज कर दीं।
2. इसके बाद, एफआईआर रद्द करने के लिए दायर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 की याचिकाएं भी माननीय उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने खारिज कर दी, जिसने जांच की वैधता को बरकरार रखा।
आरोपियों को अदालतों द्वारा संरक्षण नहीं दिए जाने के बावजूद, गिरफ्तारी नहीं करना या हिरासत में पूछताछ नहीं करना, जांच की गति और इरादे पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
धोखाधड़ी की पृष्ठभूमि और कानूनी पैरवी
ये मामले उज्जैन स्थित दो वक्फ संस्थाओं की संपत्तियों की अवैध बिक्री से जुड़े हैं, जिनके अंतिम न्यासी हिज होलीनेस डॉ. सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहब, 53वें अल-दाई-अल-मुतलक हैं।
आरोपी मुल्ला हसन नवाब पर लगभग 20.20 लाख रुपये में दो वक्फ संपत्तियां (एक मकान सहित जमीन और एक खुला प्लॉट) बेचने का आरोप है।आरोपी शब्बीर भई पालनपुरवाला पर मजार ए नजमी से जुड़ा एक खुला प्लॉट 11.00 लाख रुपये में बेचने का आरोप है।धोखाधड़ी का केंद्र एमपी वक़्फ़ बोर्ड का एक कथित तौर पर “जाली अनुमति पत्र” है, जिसका इस्तेमाल बिक्री को सही ठहराने के लिए किया गया। एमपी वक्फ़ बोर्ड के वर्तमान प्रशासक ने आधिकारिक तौर पर कभी ऐसा पत्र जारी करने से इनकार किया है। ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच में पाया गया कि आरोपियों ने कथित तौर पर दस्तावेज जाली बनाया और उज्जैन उप-रजिस्ट्रार के समक्ष शपथपत्र देकर यह झूठा दावा भी किया कि उन्हें यह भोपाल वक्फ बोर्ड से प्राप्त हुआ था।
इस मामले में क्वैशमनेट याचिका का सफलतापूर्वक विरोध और नवीनतम रिट याचिका सहित कानूनी PROCEEDINGS, शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता इब्राहिम कन्नौदवाला द्वारा संचालित की गई हैं, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि गंभीर आरोपों को उचित न्यायिक जांच मिले।
न्यायालय का आदेश
उच्च न्यायालय के के आदेश ने पुलिस की “बिना अनावश्यक देरी के जांच पूरी करने की वैधानिक obligation को फिर से रेखांकित किया है। रिट याचिका का निपटारा करते हुए त्वरित कार्रवाई के स्पष्ट निर्देश देकर, न्यायालय ने समय पर न्याय सुनिश्चित करने की आवश्यकता को पुष्ट किया है
