उज्जैन। दिल के मरीज को एक माह तक गलत दवा देने वाले मेडिकल को शुक्रवार शाम सील कर दिया गया। मामले की शिकायत मिलने पर 27 नवम्बर को स्वास्थ्य विभाग और ड्रग विभाग टीम पहुंची थी। लेकिन मरीजों की सुविधा को देखते हुए 24 घंटे का समय दिया गया था। कलेक्ट्रेट कार्यालय में गनमैन संजीव सोलंकी के पिता गंगाराम सोलंकी कार्डियक (दिल की बीमारी) मरीज है। जिनका उपचार डॉ. राज शर्मा द्वारा किया जा रहा है। डॉक्टर ने उन्हे ब्लडप्रेशर की दवा लिखी थी। एक माह से उक्त दवा फ्रीगंज स्थित पाटीदार अस्पताल के पाटीदार मेडिकोज से खरीदी जा रही थी। 27 नवम्बर को उक्त दवा वापस लेने पर सोलंकी परिवार को पता चला कि दवा कार्डिकय मरीज के लिये नहीं है बल्कि पेट साफ करने की है। संजीव सोलंकी ने मामले की शिकायत मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी के साथ खाद्य एवं औषधि प्रशासन अधिकारियों से की। मामला कलेक्टर नीरज कुमार सिंह के संज्ञान में पहुंचा तो कार्रवाई के निर्देश जारी किये गये। ड्रग इंस्पेक्टर धर्मेन्द्र कुशवाह और प्रभारी सीएमएसओ डॉ. एसके सिंह 27 नवम्बर की रात 10 बजे मेडिकल सील करने पहुंचे। जहां हंगामे की स्थिति बन गई थी। पाटीदार अस्पताल में 70 मरीज कार्डिकय के भर्ती थे। उनकी दवा पाटीदार मेडिकोज से सप्लाय हो रही थी। जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग की टीम ने नोटिस जारी किया और 24 घंटे में गलत दवा देने के मामले में जवाब प्रस्तुत करने को कहा। जवाब नहीं मिलने पर दोबारा नोटिस जारी किया गया, उसका जवाब भी नहीं दिया गया। जिसके बाद शुक्रवार शाम मुख्य चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अशोक कुमार पटेल के मार्गदर्शन में औषधि निरीक्षक धर्मेन्द्रसिंह कुशवाह, देशराजसिंह राजपूत की टीम पाटीदार मेडिकोज पहुंची और सील करने की कार्रवाई की। औषधि निरीक्षक धर्मेन्द्र कुशवाह ने बताया कि मेडिकोज का लायसेंस 15 दिन के लिये सस्पेंड किया गया है। मेडिकोज संचालक जितेन्द्र पाटीदार है, जो 2 फार्मास्टि और 8 कर्मचारियों के साथ मेडिकोज संचालित कर रहा था। मेडिकोज सील करने के साथ लायसेंस निरस्त करने की कार्रवाई औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 नियमावली 1945 के प्रावधानों के अंतर्गत की गई है।
जनप्रतिनिधियों का बनाया था दबाव
एक माह तक दिल के मरीज को गलत दवा देने वाले मेडिकोज पर 27 नवम्बर को पहुंची टीम पर मेडिकल वालों ने कार्रवाई रोकने के लिये जनप्रतिनिधियों का दबाव बनाने का प्रयास किया था। हवाला दिया जा रहा था कि 70 से 80 मरीज भर्ती है। अगर उन्हे कुछ हो गया तो जिम्मेदार कौन होगा। जबकि मेडिकल से ही एक माह तक दिल के मरीज को गलत दवा दी जा रही थी। तब मरीज के साथ कुछ गलत होने का ख्याल नहीं आया था।

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