कांग्रेस अब आदिवासी क्षेत्र में भी गच्चा खा गई

 

उज्जैन की जनता ने मोहन सरकार पर लगाई मोहर

प्रदेश में 29 की 29 सीट भाजपा की झोली में जाने से कांग्रेस को हुआ बड़ा नुकसान

 

इंदौर। आदिवासी यानी रतलाम – झाबुआ सीट से कांग्रेस का 2 लाख मतों से हारना कांग्रेस के लिए चिंता का सबब होना चाहिए। खास बात यह है कि झाबुआ और अलीराजपुर जिले की पांचो विधानसभा सीटों में कांग्रेस को पराजय मिली है। झाबुआ लोकसभा सीट पर 6 सीटें आदिवासी सुरक्षित हैं।
इनमें लगभग 62 फीसदी आदिवासी मतदाता हैं। आदिवासी मतदाताओं में लगभग 75 फीसदी मतदाता भील समुदाय के हैं जिन्हें कांग्रेस का कट्टर समर्थक माना जाता है। जाहिर है मतदान के एक सप्ताह पूर्व तक माना जा रहा था कि कांतिलाल भूरिया आसानी से जीत जाएंगे। उन्होंने भील बनाम भिलाला नैरेटिव बनाने का प्रयास भी किया लेकिन विफल रहे। इस भारी पराजय के कारण कांतिलाल भूरिया की राजनीति तो लगभग समाप्त हो गई है साथ ही उनके पुत्र विक्रांत भूरिया की राह भी मुश्किल हो गई है।

भाजपा की नवनिर्वाचित सांसद अनीता चौहान देश की सबसे पढ़ी- लिखी आदिवासी सांसद हैं। यदि उन्होंने अपनी सीट को मेंटेन किया तो झाबुआ में कांग्रेस के लिए मुश्किलें आएंगी। बहरहाल, इंदौर और उज्जैन संभाग यानी मालवा और निमाड़ अंचल की आठ लोकसभा सीटों पर भाजपा ने भारी जीत दर्ज की है। 2014 और 2019 की तरह 2024 में भी यहां कांग्रेस का सफाया हो गया है।
कांग्रेस के लिए कम से कम लोकसभा चुनाव में इस अंचल में वापसी करना आसान नहीं होगा। दरअसल, खरगोन छोड़ सभी सीटों पर भाजपा की रिकार्ड मतों से जीत हुई।

सबसे ज्यादा चर्चा रतलाम सीट की जहां पूरे चुनाव में खासा घमासान मचा रहा वहा इतिहास में सबसे बड़ी जीत भाजपा ने दर्ज की। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की गृह सीट उज्जैन भी चर्चा में थी, यहां पुरानी प्रचंड लीड़ से भी ढाई हजार मत ज्यादा मिले है। खरगोन में मुकाबला रोचक था इस सीट पर जीत का अंतर घटने के बाद भी भाजपा को 1 लाख 30 हजार से ज्यादा मतों से जीत मिली है। मंदसौर और धार सीट पर भी परिणाम कांग्रेस के लिए सदमे के समान है।
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित देवास सीट पर मुकाबला पहले दिन से बराबरी का रहा ही नहीं। इंदौर से देवास जाकर चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय किस बूते मैदान में थे यह तो मालवीय ही बता सकते है। भाजपा के महेंद्र सिंह सोलंकी ने अपना ही रिकार्ड तोड़ते हुए मालवीय को 4 लाख 23 हजार से ज्यादा मतों से पराजित कर दिया। सोलंकी पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार करीब पचास हजार वोट अधिक मिले है।

भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली एससी सीट तीर्थ नगरी उज्जैन में तो मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की प्रतिष्ठा दांव पर थी। कांग्रेस ने भी विधायक महेश परमार जैसे चर्चित और मैदानी नेता पर दांव लगाया था। परिणामों ने साबित कर दिया कि जनता के मन में क्या चल रहा था।
अनिल फिरोजिया तमाम विरोधाभासी बातें और अटकलों के बावजूद उनकी दुसरी जीत भी प्रचंड मतों से हुई है। उन्होंने अपने पिछले रिकार्ड से ज्यादा मत प्राप्त किए और कांग्रेस को 3,69,495 मतों से हराया। मंदसौर सीट पर भी भाजपा को जीत का पूरा भरोसा था। कांग्रेस ने गुर्जर वोटों का समीकरण देखते हुए दिलीप सिंह गुर्जर को मैदान में तो उतार दिया मगर मैदानी हकीकत कुछ और रही।
नए क्षेत्र में पहचान का अभाव उन्हें भारी पड़ गया और सुधीर गुप्ता ने हैट्रिक ठोक दी वह भी पिछली जीत से भी ज्यादा अंतर से। गुप्ता को इस चुनाव में एक लाख वोट ज्यादा प्राप्त हुए।

उन्होंने दिलीप गुर्जर को चार लाख 80 हजार से अधिक मतों से हराया। जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित रतलाम सीट पर कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया के सारे पैंतरे फेल साबित हुए। इस सीट पर सबसे ज्यादा घमासान था। जातिवाद, क्षेत्रवाद आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा, अवैध धंधे के आरोप लगाने जैसी हर तरह की जोर आजमाइश चलती रही। तमाम पैतरेबाजी के बाद भी अनीता नागरसिंह चौहान ने 2 लाख से ज्यादा मतों से उन्हें परास्त कर दिया। आदिवासी बहुल धार सीट पर पहले तो सावित्री ठाकुर के टिकट का विरोध खड़ा हो गया। पूर्व सांसद छतरसिंह दरबार कई दिनों तक दिल्ली में डेरा डाले रहे।
प्रदेश संगठन ने स्थानीय नेताओं को टाइट किया तब चुनावी माहौल बनना शुरू हुआ। उधर कांग्रेस प्रत्याशी जिन्होंने शुरूआत काफी दमदारी के साथ की थी। अपने ही नेताओं की उदासीनता के चलते अंतिम दिनों में पिछड़ते चले गए। नतीजा यह रहा कि भाजपा ने पिछली जीत से लगभग दोगुना मतों से यह मुकाबला जीत लिया। यहां भाजपा की सावित्री ठाकुर ने कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल को 2,18,665 मतों से हराया।
इंदौर में तो इस चुनाव में नामांकन वापसी के बाद से ही मुकाबला एक तरफा हो गया था। हार और जीत से ज्यादा चर्चे भाजपा के जीत के अंतर की और नोटा को मिलने वाले वोटों की होने लगी थी।
इसमें भी सबसे ज्यादा उत्साह लोगों को नोटा को मिलने वाले वोट का था। बहरहाल देश में सर्वाधिक मतों से जीत का रिकार्ड भाजपा के शंकर लालवानी के नाम बना है। बसपा को भी सूबे में सबसे ज्यादा वोट इसी सीट पर प्राप्त हुए और नोटा भी देश में सर्वाधिक 2 लाख से ज्यादा वोट प्राप्त कर रिकॉर्ड बना गया। शंकर लालवानी रिकॉर्ड 11,75,092 मतों से जीते।

खरगोन सीट शुरू से मुकाबले में मानी जा रही थी। शासकीय नौकरी छोड़ कर अपनी सियासी जमीन बनाने निकले कांग्रेस के पोरलाल खरते ने मजबूती के साथ चुनाव लड़ा। हालांकि जयस की मदद के बावजूद वे 1 लाख 34 हजार से ज्यादा मतों से पराजित हो गए, पर भाजपा के गजेंद्र पटेल जीत की खुशी के साथ लीड़ घटने का मलाल जरूर होगा। यहां भाजपा की जीत का अंतर 1,34,891 मतों का रहा। खंडवा सीट भी भाजपा का गढ़ बन चुकी है।
इस सीट पर 2019 में नंदकुमार सिंह चौहान 2 लाख 73 हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। उनके अवसान के बाद हुए उप चुनाव में ज्ञानेश्वर पाटिल इस लीड़ को कायम नहीं रख सके। उप चुनाव में भाजपा को करीब 2 लाख वोट कम होने का झटका लगा था। इस बार पाटिल ने नंदू भैया वाली लीड़ की बराबरी कर ली। यहां जीत का अंतर 2,69,622 मतों का रहा।