किसानों से विवाद के बाद 79 गांव में डायरियों पर बेचे गए भूखंड झमेले में पड़े

 

भूपेश व्यास और अजय सुराणा की कॉलोनियों को किसान जमीन देने को तैयार नहीं

इंदौर। एक ओर जहां शहर में मास्टर प्लान के प्रारुप के प्रकाशन के पहले जमीनों के तमाम कारोबारी अपनी जमीनों को सुरक्षित करने में लग गये है तो वहीं 79 गांव में नई स्वीकृति नहीं होने के बाद डायरियों पर बेचे गये भूखंडों के खरीददार अब उलझ रहे हैं। जिन लोगों ने अपने भूखंड कम कीमत पर डायरियों पर बेचकर अनुमति आने का इंतजार करने को कहा था अब कीमतें ज्यादा बढ़ने के बाद इनमे से कुछ ने जमीनें वापस दूसरों को बेचना शुरु कर दी है। इसमे कनाड़ियों रोड़ पर केलिफोनिया के सामने शुभलाभ का मामला सबसे ऊपर है।

इसके अलावा अजय सुराणा की चार कॉलोनियों में किसानों से विवाद होने के बाद अब सारी जमीन पर काटे गये भूखंड झमेले में पड़ गये है। दूसरी ओर 79 गांव में भरत जैन, आशीष गोयल और अरुण जैन अपनी जमीनों के नक्शे टीएनसी से मास्टर प्लान के पहले ही धारा 16 में बड़ी रिश्वत देकर निकाल लाए है।
जबकि इन नक्शों में कई खामियां बताई जा रही है। एक ओर जहां शहर को सुव्यवस्थित विकास के लिए मास्टर प्लान का इंतजार है। जो अभी तक तैयार नहीं हो
पाया है।
वर्ष 2008 में लागू किये गये मास्टर प्लान की मियाद को खत्म किए दो साल हो गये हैं। नियमानुसार तो नया मास्टर प्तान अभी तक आ जाना चाहिए था, लेकिन जिस गति से काम चला है उससे कह तप है कि अभी इसमे और समय लगेगा।
इसके चलते शहर की सीमा से सटे 79 गांव में अवैध बसाहट का खेल शुरु हो गया है। दूसरी ओर मास्टर प्लान के लागू होने से पहले ही जमीन के कारोबारियों ने भोपाल तक पूरी जमावट के बाद धारा 10 का लाभ लेते हुए अपनी जमीनों के नक्शे टीएनसी से पास करवा लिए हैं।
इस मामले में पूरे शहर में जोरों पर चर्चा है कि बिना बड़े लेनदेन के ये नबले भोपाल से पास होकर आना संभव नहीं थे। इसमे अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक की बड़ी भूमिका रही है।

दस रुपये फीट के आधार पर यह खेल किया गया, जिनके नक्शे पास होने के बाद भी उलझ गये है और वे एडवांस भुगतान भी पहुंच चुके हैं अब वे इसकी शिकायत करते घूम रहे हैं। खींचतान के बलते उनके पैसे भी उलझ गये और मास्टर प्लान तक अब उन्हें डायरियों पर ही खेल करना होगा।

इस चीच स्वीकृति नहीं मिलने के बीच भूपेश व्यास ने 1950 रुपये में डायरियों पर दो माल पाले बेचे थे परंतु अब जमीनों को कीमतें बढ़ने के बाद उनहोंने पूरी जमीन का सीद ही किसी और से कर लिया है और डावरियों पर बेचे गये भूखंड के पैसे दबाव डालकर वापस कर रहे हैं। यही स्थिति एक अन्य कॉलोनाइजर अजय सुराणा की है जिनकी चार कॉलोनियों को स्वीकृति नहीं मिलने के बाद इधर किसानों से विवाद हो गया है जिसके चलते भूखंडों को खोदने वाले अपने प्लाट के लिए कर लगा रहे है।
इस बीच रहा है कि इन जमीनों को अब अन्य लोगों को बेचा जा रहा है। इससे विवाद और बढ़ रहे है। इस मामले में शुभलाभ के अलावा अरिहंत को मुकेश जैन की शिकायत भी की गई है।
शहर में डायरियों पर भूखंड बेचकर कब्जा नहीं देने का प्रथा पिछले आठ सालों से चल रहा है। इसमें सुपर कोरिडोर पर कॉलोनी काटने वाले संजय दासद भी शामिल है जो पुराने दामो पर भूखंड खरीदने वालों को देने के लिए तैयार नहीं है।