अंतिम जत्थे को मिली सिर्फ स्वास्थ्य सेवाएं

-पंचक्रोशी यात्रा में देरी से पिंगलेश्वर पडाव पहुंचे

-शनिवार रात 2 बजे करोहन पडाव पूरी तरह से खाली,अंतिम जत्था पिंगलेश्वर में

उज्जैन। पंचक्रोशी यात्रा में इस बार भी हर बार के हाल रहे हैं। आस्था की इस यात्रा पर विधान अनुसार दशमी से शुरूआत होना चाहिए लेकिन भोले भाले श्रद्धालू विधान के विपरित अष्टमी से ग्यारस यात्रा पर निकलते हैं। इस वर्ष के हाल यह हैं कि  शनिवार को ग्यारस के दिन अंतिम जत्था पिंगलेश्वर में था और प्रारंभिक जत्था कालियादेह पहुंच चुका था।

शनिवार को उज्जैन से बल लेकर चला अंतिम जत्था रात 10.30 बजे पिंगलेश्वर पडाव पहुंचा था। पडाव स्थल पर जत्थे को मात्र स्वास्थ्य सेवाएं मिली,यहां तक की मंदिर के पुजारी सो चुके थे और मंदिर का गेट गमछे से बांध दिया गया था। जत्थे में शामिल मात्र 4 प्रोढ महिलाएं थी। ये सभी शाजापुर जिले के पनवाडी के पास स्थित दिलोद्री गांव की राजपूत महिलाएं थी। पिंगलेश्वर पडाव पर ग्यारस को पहुंचने के पीछे उन्होंने पारिवारिक कारणों से यात्रा देरी से ही शुरू करना बताया । मंदिर परिसर में ही उन्होंने अपना डेरा लगा रखा था। मंदिर परिसर के बाहर स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी पूरी तरह से सजग होकर यात्रियों की प्रतिक्षा करते देखे गए। अंतिम जत्थे की महिलाओं को स्वास्थ्य विभाग की टीम ने ही पानी का पूछा और उनसे स्वास्थ्य की जानकारी लेते हुए दर्द निवारक गोलियां भी दी थी। रात ज्यादा होने की स्थिति और मार्ग में अंधेरा होने को लेकर आगे की यात्रा के लिए जत्थे को तडके ही निकलने के लिए उपस्थित कर्मचारियों ने आग्रह किया था।

रात 2 बजे करोहन पडाव पूरी तरह खाली-

पंचक्रोशी यात्रा पर जाने वाले यात्री आधे दिन और आधी रात का उपयोग करते हैं। सुबह जल्दी उठकर अगले पडाव की और कूच कर देते हैं। धूप बढने पर पडाव डाल देते हैं। ग्यारस के दिन कायावरूहणेश्वर महादेव के दर्शन का विधान यात्रा में बताया गया है। शनिवार को करोहन पडाव पर बडी संख्या में यात्री थे। सभी ने भगवान के दर्शन पूजन किया था। शनिवार- रविवार रात्रि में 2 बजे पूरी पडाव आधे घंटे में खाली हो गया और यात्री अगले पडाव की और कूच कर गए। यहां मंदिर में पूजारी बैठे हुए थे और दर्शनों का क्रम जारी था।

पहला जत्था कालियादेह पहुंचा-

यात्रा पर गुरूवार को ही निकल गए यात्री शनिवार तडके कालियादेह महल पहुंच चुके थे। करोहन से लेकर यात्री कालियादेह तक फैले देखे गए। करोहन से नलवा ,अंबोदिया के स्थलों पर भी अच्छी खासी संख्या में यात्री गणों के जत्थे मौजूद थे। स्वयं सेवी संस्थाओं की गतिविधियां बराबर देर रात और तडके भी जारी थी। ग्रामीण क्षेत्रों में यात्रियों की सेवा का जज्बा देखते ही बनता है। कई ग्रामीण परिवार तो पंचक्रोशी यात्रियों का स्वागत ऐसे कर रहे हैं जैसे विवाह की बारात आ रही हो। बकायदा स्वागत द्वार पर बैनर लगा कर यात्रियों की अगवानी की जा रही है। शहरी क्षेत्र से भी तमाम सेवा कार्य करने वाली संस्थाएं ग्रामीण क्षेत्र में पहुंचकर खाद्य सामग्री का वितरण यात्रियों को कर रही है। उज्जयिनी सेवा समिति का भंडारा तो एक जैसा ही चल रहा है।

पिंगलेश्वर में दूध –जल चढाने के लिए जुगाड-

पिंगलेश्वर महादेव मंदिर में यात्रियों की भीड एवं भगवान को दूध एवं जल चढाने के लिए ग्रामीण जुगाड का उपयोग किया गया। मंदिर के बाहर की और स्टील का वाश बेसिन लगाया गया और उसमें पाईप लगाते हुए भगवान के उपर तक किया गया। श्रद्धालुओं को भीड अधिक होने और मंदिर छोटा होने को लेकर ऐसा किया गया । मंदिर के गर्भगृह में जाने की बजाय श्रद्धालुओं ने बाहर से ही जुगाड में दूध एवं जल अर्पित किया जो भगवान को चढ रहा था।

100 मीटर का रास्ता ठीक नहीं कर पाए जिम्मेदार-

यात्रा के लिए वैसे तो यात्रियों को किसी तरह की सुविधा की दरकार नहीं रहती है। जो सेवा में मिल जाए खा लेते हैं और परिस्थिति में बबूल की छांव में भी सूस्ता लेते हैं। प्रशासनिक स्तर पर इस वर्ष यात्रा के लिए की गई व्यवस्था माकूल रही है। यात्रा मार्ग को व्यवस्थि‍ करने को लेकर प्रशासनिक संजीदगी कुछ स्थानों पर कमजोर देखी गई। पिंगलेश्वर से यात्रा मार्ग के कुछ मीटर की दूरी पर ब्रिज के नीचे और आगे –पीछे दोनों और करीब 100 मीटर का हिस्सा यात्रियों के लिए हर वर्ष की तरह पूरी तरह से कंटकाकीर्ण ही रहा । यहां रोड रोलर चलाकर मार्ग को समतल किया जा सकता था बावजूद इसके पत्थरीले मार्ग को समतल करने के कोई प्रयास नहीं किए गए।