अक्षय राजेंद्र , दिलीप और महेश को स्वयं के बलबूते पर ही लड़ना होगा चुनाव

 

इंदौर। मांलवा और निमाड़ अंचल के कांग्रेस के प्रत्याशी लगभग अपने बलबूते चुनाव लड़ रहे हैं। यह है इंदौर से अक्षय कांति बम, मंदसौर से दिलीप गुर्जर और उज्जैन से महेश परमार। इन तीनों को कांग्रेस के प्रदेश संगठन की ओर से नाम मात्र को भी मदद नहीं मिल रही है। वैसे यही स्थिति खंडवा में नरेंद्र सिंह पटेल और देवास में राजेंद्र मालवीय की भी है।
दरअसल, इस बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी एक खास रणनीति के तहत चुनाव अभियान में लगे हैं। कांग्रेस पिछले दो चुनाव से प्रदेश की अधिकांश सीटें हार रही है। 2014 में कांग्रेस केवल छिंदवाड़ा और गुना की सीट जीत पाई थी। 2019 में कांग्रेस को केवल छिंदवाड़ा की सीट जीतने में सफलता प्राप्त हुई। जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए लड़े गए थे। इस बार भाजपा की दो तिहाई बहुमत के साथ प्रदेश में सरकार है। भाजपा ने सभी 29 सीटों पर क्लीन स्वीप करने का दावा किया है।
ऐसे में जीतू पटवारी ने चुनिंदा पांच या छह सीटों पर अपना जोर लगाया है ताकि इनमें से कम से कम तीन या चार सीटें जीत कर वो अपना प्रदेश अध्यक्ष का पद बचा सकें। मालवा निमाड़ में प्रदेश संगठन का सारा फोकस केवल रतलाम-झाबुआ और धार संसदीय क्षेत्र पर है। बहरहाल, सियासत से जुड़े समीकरण कब पलट जाएं, यह कहना कठिन होता है। उज्जैन-आलोट लोकसभा क्षेत्र में इस चुनाव में कुछ ऐसा ही हो रहा है।
कभी इस सीट पर कांग्रेस की ओर से इंदौरी नेता अपनी किस्मत आजमाया करता था। पार्टी को कोई स्थानीय चेहरा तक नहीं मिल पाता था, मगर इस बार स्थिति उलट है। लोकसभा क्षेत्र के सक्रिय कांग्रेस के तीन नेता मालवा-निमाड़ क्षेत्र की तीन लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी बना दिए गए हैं। इनमें इंदौर, मंदसौर और उज्जैन-आलोट लोकसभा सीट शामिल हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है।
कांग्रेस ने इस बार इंदौर से अक्षय कांति बम को टिकट दिया है। वे लंबे समय तक बड़नगर में सक्रिय रहे हैं। इसी तरह मंदसौर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे दिलीप गुर्जर उज्जैन जिले के नागदा-खाचरौद से विधायक रह चुके हैं और इस क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता हैं। वहीं उज्जैन-आलोट लोकसभा क्षेत्र में तराना विधायक महेश परमार को टिकट दिया गया है। बता दें कि इस क्षेत्र से कांग्रेस 1999 से लेकर 2014 तक लगातार इंदौर के बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाती आई है। इसमें एक बार बाहरी प्रत्याशी को जीत भी मिली है।
1999 में कांग्रेस की ओर से तुलसीराम सिलावट ने चुनाव लड़ा। उन्हें भाजपा के सत्यनारायण जटिया ने हराया था। 2004 में कांग्रेस की ओर से प्रेमचंद गुड्डू चुनाव लड़े। हालांकि उन्हें भी जटिया ने पराजित किया। 2009 में एक बार फिर कांग्रेस ने गुड्डू पर भरोसा जताया। इस बार गुड्डू ने सत्यनारायण जटिया को हरा दिया।
2014 के चुनाव में एक बार फिर गुड्डू मैदान में उतरे। भाजपा की ओर से चुनाव लड़े चिंतामणि मालवीय ने उन्हें शिकस्त दे दी। 2019 के चुनाव में कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी (तराना से) बाबूलाल मालवीय को चुनाव मैदान में उतारा। हालांकि मालवीय भाजपा के अनिल फिरोजिया से रिकार्ड मतों से चुनाव हार गए। इस चुनाव में कांग्रेस को प्रत्याशी चयन में खासी मशक्कत करना पड़ी। उज्जैन आलोट में महेश परमार के अलावा पार्टी के पास कोई ठोस विकल्प नहीं था।
परमार ने यहां नगरीय निकायक चुनाव में महापौर पद के लिए भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दी थी। साथ ही हाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की। इसलिए पार्टी ने परमार पर ही दांव लगाने का निर्णय लिया।
इधर नागदा-खाचरौद के विधायक रहे कांग्रेस नेता दिलीप गुर्जर को मंदसौर भेजने के पीछे भी कई कारण रहे। गुर्जर मंदसौर क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। पार्टी के परंपरागत वोट सहित गुर्जर समाज के वोटों को भी साधने की जुगत कांग्रेस नेताओं ने लगाई है। बड़नगर में सक्रिय रहे अक्षय कांति बम को इंदौर से चुनाव लड़ाने के पीछे भी पार्टी की कुछ इसी तरह की रणनीति रही।