लघु तीर्थ स्वरूप जिन प्रसाद : सुमति धाम


इंदौर। गौरवशाली, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध मालवा मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध स्वच्छ एवं स्मार्ट शहर इंदौर में एयरपोर्ट से 2 किलोमीटर आगे गांधीनगर के समीप विकसित टाउनशिप गोधा स्टेट में धर्म , समाज, संत और संस्कृति के प्रति समर्पित एक निर्भिमानी – महादानी सुश्रावक दंपत्ती मनीष- सपना गोधा द्वारा अपने स्व अर्जित धन से लघु तीर्थ स्वरूप एक भव्य एवं सुदर्शनीय सुमतिधाम का निर्माण एवं उसकी ऐतिहासिक एवं भव्यातिभव्य प्राण प्रतिष्ठा करवा कर दिगंबर जैन समाज को समर्पित किया जा रहा है।


वैसे तो नगर में शताधिक जिनालय हैं, लेकिन देश के ख्याति प्राप्त वास्तु शिल्पी राकेश सोमपुरा के निर्देशन मे इंदौर के गोधा स्टेट में निर्मित लघु तीर्थ स्वरूप जिन प्रसाद( सुमति धाम) नगर का पहला जिन मंदिर होगा जिसकी स्वर्ण से सज्जित वेदी में जैन धर्म के पंचम तीर्थंकर सुमित नाथ भगवान की वियतनाम से आयातित मार्बल की 51 इंच ऊंची श्वेत वर्णीय प्रतिमा मूल नायक के रूप में विराजमान की गई है जिसकी सुदर्शनीय छवि न केवल मनमोहक है बल्कि भक्तों पर अपनी करुणा बिखेरती प्रतीत होती है।


नागर शैली में निर्मित सुमतिधाम जिनालय का बाह्य स्वरूप बंसी पहाड़पुर के पाषाण से निर्मित एवं भीतर का स्वरूप श्वेत संगमरमर (मार्बल) से निर्मित है जिस पर की गई नक्काशी मनमोहन एवं वास्तु शिल्प कला का अनुपम उदाहरण है।


मंदिर के सम्मुख परिसर में एक भव्य मान स्तंभ का भी निर्माण किया गया है जिस पर जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं।

मंदिर परिसर में दस हजार वर्ग फीट में एक भव्य संत सदन का निर्माण भी किया गया है । मंदिर परिसर में प्रवेश के लिए लाल पाषाण से निर्मित एक भव्य एवं सुंदर प्रवेश द्वारा भी निर्मित किया गया है जो मंदिर को भव्यता प्रदान कर रहा है। सुमति धाम की ऐतिहासिक प्राण प्रतिष्ठा (6 मार्च से 11 मार्च) तक आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में संपन्न हो रही है। मंदिर के निर्माण एवं प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए ना तो किसी से दान लिया गया और ना ही बोली लगाई गई है संपूर्ण व्यय एवं व्यवस्था सुमतिधाम के पुण्यार्जक गोधा परिवार के सौजन्य से ही संपन्न हो रही है।

सुमतिधाम जिनालय में प्रतिष्ठित होने वाली प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा, उसका तेजोमय आलोक एवं दिव्यता और पवित्रता जन-जन के हृदय मंदिर में प्रतिष्ठित आत्मा के देवता को भी प्राणवंत विवेक धर्मा बनाए ऐसी हम सब कामना करते हैं।

लेखक : डॉ जैनेन्द्र जैन