उज्जैन। इस बार की मकर संक्रांति का वाहन अश्व और उप वाहन सिंह रहेगा। ज्योतिष शास्त्रों में दोनों ही वाहनों का अलग-अलग महत्व बताया गया है। ज्योतिषियों ने बताया कि पंचांग की गणना के अनुसार 14 जनवरी की रात तीन बजे सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा। 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व काल मनाया जाएगा। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत के अनुसार जब संक्रांति का क्रम सायं अथवा रात्रि या अपर रात्रि में हो तो पर्वकाल अगले दिन मनाने की बात कही गई है।
15 जनवरी को पुण्य काल मनाना शास्त्र सम्मत
इस दृष्टिकोण से 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पुण्य काल मनाना शास्त्र सम्मत रहेगा। इस दिन तीर्थ स्नान तथा तिल, गुड़ व मूंग की दाल-चावल की खिचड़ी के दान का विशेष महत्व है। इस बार मकर संक्रांति का पर्व काल इसलिए विशेष माना जाता है कि इस दिन से सूर्यदेव दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन करते हैं। सूर्य का उत्तरायण शुभ, मांगलिक कार्यों के लिए विशेष शुभ माना जाता है। इस बार मकर संक्रांति का पर्वकाल इसलिए भी सर्वश्रेष्ठ रहेगा क्योंकि यह वरियान योग की साक्षी में मनाया जाएगा।
सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है
मकर संक्रान्ति भारत के प्रमुख पर्वों में से एक है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में भिन्न रूपों में मनाया जाता है। पौष मास में जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है उस दिन इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में जाना जाता हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। बिहार के कुछ जिलों में यह पर्व ‘तिला संक्रांत’ नाम से भी प्रसिद्ध है। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 14 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर (जाता हुआ) होता है। इसी कारण इस पर्व को ‘उतरायण’ (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। वैज्ञानिक तौर पर इसका मुख्य कारण पृथ्वी का निरंतर 6 महीनों के समय अवधि के उपरांत उत्तर से दक्षिण की ओर वलन कर लेना होता है और यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।