सहकारिता विभाग को 40 लाख देने के बाद भी सोसायटी को नही मिलेगा बैंक भवन का पुरा अधिपत्य

 

 

लोकमान्य नगर हाऊसिंग के विपरीत 2-2 लाख नगद निकाले गये

इंदौर। तालाबंदी की शिकार महाराष्ट ब्राम्हण बैंक के अंतिम डिपॉझिटर्स को उसकी जमापुंजी मिलने तक लोकमान्य नगर स्थित बँक भवन के पहली मंजिल पर सहकारिता विभाग आपना रिकॉर्ड-सामान रख सकता है। यह जिक्र लोकमान्य नगर हाऊसिंग सोसायटी और सहकरिता विभाग के बीच लोकमान्य नगर स्थित महाराष्ट ब्राम्हण बैंक के भवन के संबंध मे हुए समझौता प्रस्ताव में है। जिस पर पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर के दस्तखत है। जो उन्होने सोसायटी के प्रबंध समिती की बैठक मे पारित एक प्रस्ताव के आधार पर किये है।

इस प्रस्ताव के समर्थक तत्कालीन संचालक और ठाकुर के अंधभक्त संजीव करंबेळकर, संजय भागवत, राकेश वारकर, अभिजित चोळकर, प्रकाश वैद्य (वर्तमान मे लोकमान्य विद्या निकेतन स्कुल के अध्यक्ष), श्रीमति सुहास चांदवास्कर थे। संचालक अपर्णा देव त्यागपत्र दे चुकी थी, वही अजय दंडवते ने निर्वाचन के सालभर बाद ही बोर्ड मीटिंग में जाना छोड दिया था।
इस तरह से हुए समझौते से सोसायटी को भवन के पहली मंजिल की 700 वर्गफिट जगह मिलना बड़ी मुश्किल पड गया है। (लगभग पुरी मंजिल ) जिससे सोसायटी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अजय वैशंपायन और उनके साथी संचालक गण बेहद चिंताग्रस्त है। क्योंकि परिसमापनाधिन बैंक के पीडित निदर्दोष डिपॉझिटर्स को जमा पुंजी वापस मिलने मे कितने साल ओर लगेंगे कोई नहीं कह सकता। बैंक सत्रह साल पहले इतिहास में दर्ज हुई थी। इसी दरमियां बैंक के कोई तेरहसौ बड़े डिपॉझिटर्स में से सात सौ जमा पुंजी वापस मिलने की आंस में स्वर्ग सिधार चुके है। छोटे-मोटे तो हजारों में है।

सोसायटी को दिवालिया हो चुकी महाराष्ट्र ब्राम्हण सह. बैंक को शाखा संचालन हेतु लीज पर दिया गया भूखंड और उस पर बना खंडहर बन चुका दो मंजिला भवन वापस मिला था। जिसके लिये सोयायटी को सहकारिता विभाग को कोई चालीस लाख चुकाने पड़े थे। इसके बावजूद सहकारिता विभाग ने भवन को आज तक खाली नही किया है। सोसायटी के तत्कालीन अध्यक्ष वैभव ठाकुर ने भवन रिक्त करवाने हेतु आगे कोई कार्रवाई नही करने से नई प्रबंध समिति ने अब कार्रवाही शुरू की। उालेखनीय है कि 39 साल पहले 1984 में लोकमान्य सोसायटी की आम सभा में कोलोनी की मातृसंस्था महाराष्ट ब्राम्हण सहकारी बैंक की शाखा संचालित करने हेतु लीज पर भूखंड देने का प्रस्ताव सर्वानुमतिसे पारित हुआ था ।
उसके बाद सात वर्ष तक आगे कोई कार्यवाही नही हुई थी। फिर 1991 में नियमानुसार लीज निष्पादन करके भूखंड दिया गया था। उसके बाद तीन साल में वहां तत्कालीन अध्यक्ष और सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष सुरेश लोखंडे तथा सचिव स्वर्गीय सुरेश उन्हेलकर के कार्यकाल में लाखों रुपये खर्च करके भवन बनाया गया था, लेकिन संचालक मंडल में आपसी खींचतान और लापरवाही के चलते भवन खंडहर में तब्दील हो गया था।
उसके बाद 1997 में महाभ्रष्ट प्रोफेसर यशवंत डबीर तथा सुमित्राताई पुत्र मिलिंद महाजन के गुट का बैंक पर कब्जा हो गया था। तीन-चार माह बाद ही लालची स्वार्थी संचालकों ने व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से बेखौफ काले कारनामे भ्रष्टाचार शुरू कर दिये थे। आखिर 2004 में बैंक डूब गयी। उसके बाद 16 साल तक शाखा भवन फिर से खंडहर हो गया था। बैंक द्वारा वर्ष

2000 से इस जगह लीज रेंट का भुगतान नही किया गया था। वास्ते पूर्वाध्यक्ष वैभव ठाकुर ने दो साल पहले उक्त भूखंड और उस पर बना भवन वापिस लेने संबंधी कार्यवाही तेज की थी। उन्होने सहकारिता विभाग के समक्ष समझौता प्रस्ताव रखा था। जिसे सांठ, विशेष सेटिंग के जरिये मान्य करवा लिया था। फिर विभाग ने शाखा भवन की मार्केट वेल्यू निकलवाकर सोसायटी से चालीस लाख रुपये लेकर भूखंड व खंडहरनुमा भवन सोसायटी को वापस कर दिया था। । लेकिन उसमे रखा रिकार्ड सामान वैसे ही राख7 था।
इसी के साथ बैंक के खातीपुरा स्थित मुख्यालय भवन की नीलामी हो जाने से लोकमान्य सोसायटी ने परिसमापनाधिन बैंक के संचालन हेतु लोकमान्य नगर में ही टंकी भवन मे 700 वर्ग फिट जगह (कुछ कमरे) दिये है। वहां बैंक का कुछ रिकार्ड पड़ा है। लेकिन उसका कोई उपयोग नही हो पा रहा है। क्योंकि बैंक के मुख्यालय भवन के निलामी का मामला अदालत में चला गया है।

इसलिये बैंक संचालन खतीपुरा स्थित मुख्यालय भवन में ही हो रहा है। लोकमान्य नगर सोसायटी ने वापस लिया खंडहर नुमा भवन उसी हालात में है। यह वहीं भवन है जहां वर्ष 2004 में बैंक पच्चीस करोड़ के घाटे में रहते 26 जनवरी के दिन बैंक के तत्कालीन बैंक अध्यक्ष डबीर और लोकमान्य नगर निवासी डायरेक्टर चंद्रकांत करमरकर आदेश पर सुरक्षा कर्मियों ने 35 हवाई फायर किये थे।
उसी समय बेरहम डबीर ने यह भी घोषणा की थी कि हमे रिझर्व बैंक के आदेशानुसार कोई 30 कर्मचारियों को बाहर करना जरूरी है। अतः वे अन्यत्र नौकरी की तलाश करें। इस मामलेमें एक बार फिर अनिल धड़वईवाला ने शिकायत दर्ज कराई।