इथिकल दवा लिखने वाले डाक्टरर्स हो जाएं सचेत,उज्जैन सीएमएचओ खूद जांचने निकलेंगे

-पर्चे पर दवाईयों के नाम केपिटल लेटर्स में लिखना होगा,जांच करवा कर नोटिस जारी होंगे

उज्जैन।मरीज के पर्चे पर इथिकल दवा लिखने वाले डाक्टर्स सचेत हो जाएं। उज्जैन के नवागत सीएमएचओ डा.दीपक पिप्पल भारत शासन के गजट नोटिफिकेशन का पालन करवाने के लिए कभी भी जांच के लिए मैदान में उतर सकते हैं।ऐसे डाक्टर्स भी सचेत हो जाएं जो कि पर्चे पर दवा लिखते है तो या तो वे खूद पड़ सकते हैं या फिर उनका मेडिकल स्टोर वाला ही।डा.पिप्पल का कहना है कि जिले में भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन को हुबहु लागू करवाया जाएगा।

आम आदमी को सस्ता ईलाज उपलब्ध हो इसके लिए भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद ने 8 अक्टूबर 2016 को भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन का प्रकाशन किया । इसमें परिषद ने स्पष्ट करते हुए बताया कि डाक्टरों के व्यावसायिक आचरण ,शिष्टाचार एवं नैतिकता विनियमावली 2002 में पून:संशोधन किया। संशोधन के तहत चिकित्सकों के सामान्य कर्त्तव्य और उत्तरदायित्व तय किए गए। इसमें स्पष्ट किया गया कि डाक्टरों को मरीज का उपचार के दौरान औषधि के जैनेरिक नाम का प्रयोग करना होगा। पर्चे पर दवा का नाम स्पष्टता और अधिमान्यत: केपिटल लेटर्स मं करना चाहिए। डाक्टर को सुनिश्चित करना है कि दवा का पर्चा तथा दवाओं का प्रयोग तर्क संगत हो।

इथिकल दवा और अस्पष्ट लिखाई-

जिले भर में अधिकांशत: डाक्टर्स अपने पर्चे पर इथिकल महंगी दवाओं के नाम लिख रहे हैं वो भी अस्पष्ट होता है।दवा लिखने के उपरांत तर्क संगत उत्तरदायित्व की स्थिति भी नहीं है।लिखी गई इथिकल दवा संबंधित चिकित्सक के अस्पताल,क्लिनिक,के पास के ही या संबंधित प्रायवेट अस्पताल के मेडिकल में ही मिलती है। डाक्टरों के आसपास ही मेडिकल स्टोर्स भी हैं कुछ डाक्टरों ने तो खुद के परिसर में ही मेडिकल खोल रखे हैं।कंपनियों की मार्केटिंग के तहत कमीशन के लिए इथिकल दवाओं का ही उपयोग किया जा रहा है।ज्यादातर स्त्री रोग के इलाज में गायनिक डाक्टर्स का  ऐसा इलाज सामने आ रहा है। जिले भर में कंपनियों की मार्केटिंग के मकडजाल में घिरे कतिपय डाक्टर्स  मरीजों को इथिकल दवाई लिखकर आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं।

जेनेरिक दवा क्या है

कंपनियां बीमारियों के इलाज के लिए शोध करती हैं और उसके आधार पर सॉल्‍ट बनाती हैं। जिसे गोली, कैप्‍सूल या दूसरी दवाइयों के रूप में स्टोर कर लिया जाता है। एक ही सॉल्‍ट को अलग-अलग कंपनियां अलग-अलग नाम से तैयार करती हैं और अलग-अलग कीमत पर बेचती हैं। साल्ट का जेनेरिक (सामान्य) नाम एक विशेष समिति तय करती है। पूरी दुनिया में सॉल्‍ट का जेनेरिक नाम एक ही होता है। एक ही सॉल्ट की ब्रांडेड दवा और जेनेरिक दवा की कीमत में 5 से 10 गुना का अंतर हो सकता है। कई बार तो इनकी कीमतों में 90 फीसदी तक का भी फर्क होता है। किसी फॉर्मूला पर आधारित अलग-अलग कैमिकल मिलाकर दवाई बनाई जाती है। कोई बुखार की दवाई है, अगर इसी दवाई को कोई बड़ी कंपनी बनाती है तो यह ब्रांडेड बन जाती है। हालांकि, कंपनी सिर्फ उस दवाई को एक नाम देती है। वहीं, जब कोई छोटी कंपनी इसी दवाई बनाती है तो इसे जेनेरिक दवाई कहा जाता है। हालांकि, इन दोनों के असर में कोई अंतर नहीं होता है। सिर्फ नाम और ब्रांड का अंतर होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, दवाइयां मॉलिक्यूल्स और सॉल्‍ट से बनती हैं। इसलिए दवा में सॉल्‍ट ही महत्वपूर्ण होती है ब्रांड व कंपनी नहीं। जेनेरिक दवा के फॉर्मूला पर तो पेटेंट होता है, लेकिन उनके मैटिरियल का पेटेंट नहीं होता है। अंतरराष्‍ट्रीय मानकों पर बनी जेनेरिक दवाइयों का असर भी ब्रांडेड दवाइयों के बराबर ही होता है। जेनेरिक दवाओं की डोज और साइड इफेक्ट ब्रांडेड दवाइयों जैसे ही होते हैं। जेनेरिक दवाइयों की सीधे मैन्युफैक्चरिंग होती है. इनके ट्रायल्‍स भी पहले ही हो चुके होते हैं। जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार के हस्तक्षेप से तय की जाती हैं और इनके प्रचार पर कुछ खर्च नहीं किया जाता है।

 

ये है इथिकल –

पेटेंट ब्रांडेड दवाइयों की कीमत कंपनियां तय करती हैं. इनके रिसर्च, डेवलपमेंट, मार्केटिंग, प्रचार और ब्रांडिंग पर बहुत खर्चा किया जाता है।ये खर्च कंपनियां जोडकर ही अपनी दवा को डाक्टर्स के माध्यम से मरीजों को लिखवाती है।इसके चलते मरीज को इलाज के दौरान वेवजह ही अधिक आर्थिक भार उठाना पड़ता है।जेनेरिक दवा लेने पर जिस इलाज के लिए उसे मात्र कुछ सेंकड़ा खर्च करना पडते वही इलाज इथिकल दवाईयों के कारण हजारों में पड़ जाता है।

सरकारी अस्पताल में मिलती है जेनेरिक दवा-

सरकारी अस्पताल में ईलाज करवाने वाले मरीजों को अधिकांशत: जेनेरिक दवा ही उपचार में दी जाती है। जिला अस्पताल एवं माधव नगर के साथ ही जिले के सभी सरकारी अस्पताल में जेनेरिक दवा ही मरीजों को नि:शुल्क दी जा रही है।अस्पताल से मिलने वाली बहुत कम दवा होती है जो इथिकल होती है।वह भी शासन खरीद में कंपनियों से अनुबंध के आधार पर सस्ती ली जाती है।जेनेरिक दवाओं को लेकर नकारात्मक प्रचार का खर्च भी ब्रांडेड कंपनियां ही करती है जिससे की उनकी महंगी इथिकल दवा मरीज खरीदे  और कंपनी को बेवजह ही लाभ मिले।

-राजगढ़ में रहते हुए मैने गजट नोटिफिकेशन को हुबहु लागू करवाया था।यहां अभी आया हुं,अब इस मामले में कार्रवाई करते हुए जिला चिकित्सालय के साथ ही प्रायवेट अस्पतालों और क्लिनिक डाक्टर्स पर भी इसे पालन करवाएंगे।नोटिस जारी करवाएंगे।मैं खुद इस मामले में जाकर देखुंगा।

-डा.दीपक पिप्पल,मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जिला,उज्‍जैन