April 25, 2024

जहां बने उनमें 2 साल से पड़े हैं ताले या फिर उनका रखरखाव नहीं

इंदौर/ उज्जैन। मदर्स-डे यानी मां का दिन। मां को दर्जा तो ईश्वर से बढ़कर मिला परंतु उन्हें सुविधाएं देने पर ठोस काम नहीं हुए। यही वजह है कि शहर में शिशुवती महिलाओं को अपने बच्चे को फीडिंग कराने के लिए कई सार्वजनिक स्थलों पर बेबी फीडिंग सेंटर तक की सुविधा उपलब्ध नहीं है। जो कुछ जगहों पर बने भी हैं, उनमें सालों से ताले लटके पड़े हैं। दरअसल, शहर में काम से निकलने वाली दुधमुंहे बच्चों की मां के सामने उस समय असहज स्थिति बन जाती है जब वे किसी सार्वजनिक स्थान पर हों और बच्चा भूख लगने पर रोने लग जाए।
उनके सामने दो ही विकल्प रह जाते हैं या तो सारे कामकाज बीच में ही छोड़कर बेबी को दूध पिलाने के लिए घर पहुंचे, भले ही इस दौरान बच्चा रोता रहे या फिर आसपास ही किसी वाहन, पेड़, पार्क की ओट खोजे और बेबी को दूध पिलाए। शहरों में स्थिति यह है कि व्यस्ततम बाजार क्षेत्र आदि में शी-लांज या बेबी फीडिंग सेंटर बनाए ही नहीं गए हैं। अधिकांश माताओं का कहना है कि बच्चों को दूध पिलाने के लिए सबसे बड़ी बाधा घूरना, स्वच्छता और गोपनीयता की कमी है। इसीलिए बेबी फीडिंग जैसे सेंटर उपयोगी साबित हो सकते हैं।

मां के लिए एक दिन कैसे हो सकता है?

जिस मां ने जन्म दिया, तमाम मुश्किलात के बाद भी पाला – पोसा, जिसने अपने रक्त से सींचा, ,9 माह अपने गर्भ में रखा उसके लिए साल का एक दिन कैसे हो सकता है। साल का हर दिन और हर क्षण मां को समर्पित है। फिर भी मदर्स डे के दिन मां के प्रति आभार प्रदर्शन के साथ-साथ अपने स्वयं के अंतर में झांकने का अवसर मिलता है। यह दिन मां को समर्पित है।
मदर्स डे पर मां की महिमा को प्रणाम करने का मन करता है लेकिन साथ ही हमें यह स्मरण रहता है कि मां का कोई एक दिवस नहीं सारे दिवस सारे क्षण मां के ही हैं। क्योंकि मां अपने आप में विलक्षण और दुर्लभ है।
मां के चले जाने के बाद भी उनका आशीर्वाद भावनात्‍मक रूप से साथ चलता है। जीवन का सबसे सुखद अनुभव है मां का साथ होना। मां का स्पर्श अमृत समान होता है।