कोर्ट ने दिया कुरान का हवाला– पहली बीवी के रहते दूसरे निकाह का हक नहीं’

“कुरान के मुताबिक एक मुस्लिम व्यक्ति दूसरा निकाह तभी कर सकता है, जब वह पहली बीवी और बच्चों को पालने में सक्षम हो

प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो निकाह करने वाले एक व्यक्ति के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा, “कुरान के अनुसार एक मुस्लिम व्यक्ति दूसरा निकाह तभी कर सकता है, जब वह अपनी पहली बीवी और बच्चों को पालने में सक्षम हो। यदि वह उन्हें पालने में असमर्थ है, तो उसे दूसरा निकाह करने का कोई अधिकार नहीं है।”
अदालत ने सूरा 4 आयत 3 (कुरान) का हवाला देते हुए कहा, “दूसरा निकाह तभी किया जा सकता है, जब शौहर अपनी पहली बीवी और उससे हुए बच्चों का भरण पोषण करने में सक्षम हो। यह बात सभी मुस्लिम पुरुषों पर लागू होती है।” इसके बाद अदालत ने शौहर अजीजुर्रहमान की याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की पीठ ने कहा, “जिस समाज में महिला का सम्मान नहीं, उसे सभ्य समाज नहीं कहा जा सकता। महिलाओं का सम्मान करने वाले देश को ही सभ्य देश कहा जा सकता है। मुस्लिमों को खुद ही पहली बीवी के रहते दूसरा निकाह करने से बचना चाहिए। कुरान भी एक बीवी के साथ न्याय न कर पाने वाले मुस्लिम व्यक्ति को दूसरे निकाह की इजाजत नहीं देता।”