कमेटी तो बनी लेकिन आज तक कोई सिफारिश नहीं की सरकार को
उज्जैन। उज्जैन जिले सहित पूरे मप्र में पदस्थ आईएएस, आईपीएस, आईएफएस समेत दो लाख कर्मचारी-अधिकारी केंद्र सरकार की यूपीएस (यूनिफाइड पेंशन स्कीम)और एनपीएस (नेशनल पेंशन स्कीम) की फांस में फंसे हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश में यूपीएस लागू करने के लिए सरकार ने जो कमेटी बनाई है उसने आज तक कोई सिफारिश सरकार को नहीं की है।
वहीं केंद्रीय कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) का विकल्प चुनने की अंतिम तारीख नजदीक आ गई है। केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए यूपीएस का विकल्प चुनने के लिए 30 नवंबर की डेडलाइन तय की है। यानी जो कर्मचारी इस तारीख तक यूपीएस नहीं अपनाएंगे, उन्हें अनिवार्य रूप से नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) में बने रहना होगा।
गौरतलब है कि मप्र सरकार ने भी केंद्र की तर्ज पर अपने कर्मचारियों के लिए यूपीएस लागू करने की तैयारी कर ली थी। इसके लिए मप्र सरकार ने अप्रैल, 2025 में सीनियर आईएएस अफसरों की एक कमेटी बनाई थी, लेकिन कमेटी ने अब तक इस संबंध में सरकार को कोई सिफारिश नहीं की है। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक केंद्र में यूपीएस को मिले खराब रिस्पॉन्स को देखते हुए मप्र सरकार इसे लागू करने के मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ पाई है। मप्र सरकार के कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, केंद्र सरकार ने एक अप्रैल, 2025 से अपने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम लागू की थी। मप्र सरकार के कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) लागू करने की मांग कर रहे हैं। दरअसल, केंद्र सरकार ने एक अप्रैल, 2025 से अपने कर्मचारियों के लिए यूनिफाइड पेंशन स्कीम लागू की थी। सरकार ने एनपीएस के मुकाबले यूपीएस को कर्मचारियों के लिए बेहतर बताते हुए इसे अपनाने की बात कही थी, लेकिन शुरुआत से ही यूपीएस का विकल्प चुनने में केंद्रीय कर्मचारियों ने रुचि नहीं दिखाई। गत 28 जुलाई को वित्त मंत्रालय ने संसद में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जानकारी दी थी कि 20 जुलाई की स्थिति में कुल 31,555 केंद्रीय कर्मचारियों ने यूपीएस को चुना है, जो पात्र कर्मचारियों का सिर्फ लगभग 1.37 प्रतिशत है। यूपीएस के लिए पात्र केंद्रीय कर्मचारियों की कुल संख्या करीब 23 लाख है। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए यूपीएस का विकल्प चुनने की तारीख दो महीने बढ़ाकर 30 नवंबर तय कर दी है। इसके बाद भी कर्मचारियों ने यूपीएस का विकल्प चुनने में खास रुचि नहीं दिखाई है।
