खुसूर-फुसूर
आखिर चिढचिढापन,झल्लाहट किस बात की
सिंहस्थ -28 तकरीबन अब धीरे-धीरे सिर पर आ रहा है। उसकी तैयारी के लिए शुरूआत हो चुकी है। निर्माण कार्यों को लेकर नीचे से उपर तक के अधिकारी सार्वजनिक तौर पर ही बोल चुके हैं कि सब समयानुकुल हो रहा है। सब समय पर हो जाएगा।दिसंबर 2027 में सब कुछ तैयार मिलेगा। इसमें किसी को कोई चिंता नहीं करना है जिम्मेदार अधिकारी सब तैयारी कर रहे हैं और उनके काम को लेकर मानिटरिंग हो रही है। इसे लेकर बराबर अधिकारी बैठक भी कर रहे हैं और कार्यों की प्रोग्रेस रिपोर्ट भी बराबर कागजों में बनकर वरिष्ठों तक पहुंच ही रही होगी। इस सब के बीच न तो इन कामों को लेकर कोई वरिष्ठ अधिकारी ही कुछ बोलने को और विस्तृत रूप से निर्माण को मिडिया के सामने रखने को तैयार है और न ही विभागीय जिम्मेदार अधिकारी। अगर मिडिया विभागीय अधिकारियों से सवाल कर पूछे तो अव्वल तो ऐसे मिडिया कर्मियों से निर्माण विभाग के कतिपय अफसर बचने में लगे रहते हैं और अगर कहीं भूले से फोन उठा लें तो सवाल पर चिढचिढेपन और झल्लाहट की स्थिति में जवाब देने के हाल सामने आ रहे हैं। अव्वल तो चौके में खाना बनाने वाली गृहणि अगर चिढचिढाहट में भोजन तैयार करेगी तो तय है उसे खाने वालों की मानसिकता पर क्या प्रभाव होगा। अफसरों के चिढचिढेपन और झल्लाहट के साथ ही अवसाद की स्थिति के पीछे आखिर कारण क्या है। आखिर क्यों अफसर मिडिया और उनके सवालों से बचने के हाल में हैं। ऐसे कई सवाल खडे हो रहे हैं । खुसूर-फुसूर है कि असल में कामों में आ रही बार-बार अडचन और समय का अभाव इस प्रकृति के लिए बार-बार जिम्मेदार बन रहा है। निचले स्तर के काम करने वाले अधिकारी इसमें पिसने के हालात में हैं। पूल बनाने हैं डेढ दर्जन से अधिक और निविदा के स्तर पर ही इसमें से एक दर्जन उलझे हुए हैं।अब अधिकारी मिडिया से रूबरू हों और जवाब भी दें तो क्या दें। इधर कुआ है तो उधर खाई के हाल में उलझे होने के कारण बेचारे मुंह सिले बैठे हैं।
