शनिश्चरी अमावस्या स्नान को कम ही जूटे श्रद्धालु श्रद्धालुओं की संख्या के सामने व्यवस्था बडी रही -शास्त्रोक्त एक दिन पूर्व ही मनी अमावस्या,अस्त में मान्य न होने से नहीं आए श्रद्धालु

 

उज्जैन। शनिश्चरी अमावस्या को लेकर प्रशासन द्वारा की गई व्यवस्था श्रद्धालुओं के सामने बडी रही है। अनुमान से भी काफी कम संख्या में ही श्रद्धालु शनि मंदिर घाट पर स्नान के लिए पहुंचे थे। कम श्रद्धालुओं के आने से न तो आवागमन में समस्या सामने आई और न ही पार्किंग एवं सुरक्षा के इंतजाम ही कम पडे। हाल यह रहे कि फव्वारे खाली चलते रहे और श्रद्धालु गिनती के रहे।

शनिश्चरी अमावस्या को लेकर इंदौर रोड श्री शनिदेव नवग्रह मंदिर पर प्रशासनिक स्तर पर व्यापक इंतजाम किए गए थे। नगर निगम की और से भी यहां पर्याप्त प्रबंध किए गए थे और जमकर अधिकारियों को जिम्मेदारी दी गई थी। सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग ने भी अपने अधिकारियों की डयूटी लगाई थी। राजस्‍व विभाग की और से ग्राम कोटवारों को भी मंदिर की व्यवस्था में लगाया गया था। शनिवार सुबह से ही मंदिर पर श्रद्धालुओं का इंतजार होता रहा । इस दौरान एक –एक ,दो-दो श्रद्धालु आते रहे,साथ ही शनिवार को दर्शन करने जाने वाले नियमित एवं अन्य श्रद्धालु ही पहुंचे थे। दोपहर तक यहां स्नान एवं दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं का आंकडा चार अंकों में ही सिमट गया। मंदिर प्रबंध समिति के प्रबंधक एवं पटवारी सतीश मोथलिया बताते हैं कि सुबह के समय 9-10 बजे तक ही त्रिवणी स्नान के लिए श्रद्धालु जुटे थे। ये भी भाग –भाग में आते रहे और फव्वारा स्नान कर भगवान की दर्शन पूजन किया। नियमित श्रद्धालुओं सहित अमावस्या स्नान के लिए आने वाले सभी श्रद्धालुओं की संख्या 4-5 हजार में ही सिमट गई थी। व्यवस्थाएं आकस्मिक रूप से अगर श्रद्धालुओं की संख्या के मान को देखते हुए की गई थी।

कपडे-पनौती नगर निगम ने बटोरी-

मंदिर समिति के प्रबंधक श्री मोथलिया बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व तक मंदिर समिति को श्रद्धालुओं द्वारा छोडे गए कपडे एवं पनौती रूपी जूते –चप्पलों के विक्रय से आय होती थी। समय के साथ इसमें बदलाव आया और अब प्लास्टिक के जूते –चप्पलों का चलन कम हो गया है। कपडे भी अलग ही तरह के हैं। ऐसे में नगर निगम ही कपडे एवं जूते –चप्पल बटोर कर ले जाता है। इनसे कोई आय नहीं होती है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा तेल एवं नारियल की बिक्री से आय होती है।

शास्त्रोक्त एक दिन पूर्व मनी अमावस्या-

मंदिर से जुडे पंडित जितेन्द्र बैरागी बताते हैं कि शास्त्रोक्त रूप से शुक्रवार को ही अमावस्या पर्व था। पंचांग एवं ज्योतिषाचार्यों ने भी शुक्रवार को ही अमावस्या घोषित की थी। शनिवार को अस्त की अमावस्या होने से इसका महत्व नहीं होता है। सूर्य उदय की तिथि ही मान्य होती है। ऐसे में शनिवार को अमावस्या नहीं है इस प्रकार का संदेश अंचल एवं श्रद्धालुओं को पहले से ही था। इसी के चलते त्रिवेणी श्री नवग्रह शनि मंदिर पर श्रद्धालु अन्य शनिश्चरी अमावस्या के मुकाबले कम ही जुटे।

 

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