बी.एल. संतोष की भोपाल में मैराथन बैठकें: बंद कमरों में बीजेपी नेताओं से चर्चा, बाहर किसानों का हंगामा
भोपाल | 1 सितम्बर 2025
भोपाल सोमवार का दिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए सियासी हलचल से भरा रहा। पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष सुबह से देर रात तक राजधानी में रहे और सरकार व संगठन से जुड़े तमाम नेताओं, विधायकों और मंत्रियों से बंद कमरों में अलग-अलग मुलाकातें कीं। वहीं दूसरी ओर, इसी दौरान उज्जैन-जावरा ग्रीनफील्ड हाईवे प्रोजेक्ट से नाराज किसान प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुंच गए और नारेबाजी करने लगे।
बी.एल. संतोष की मैराथन बैठकें
बी.एल. संतोष ने दिन की शुरुआत मुख्यमंत्री मोहन यादव से मुलाकात से की। इसके बाद उन्होंने संघ और पार्टी की संयुक्त बैठकों में हिस्सा लिया। बैठकें खत्म होने के बाद उनका कार्यक्रम प्रमुख नेताओं के साथ वन-टू-वन चर्चा का रहा।
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उन्होंने पूर्व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा से लंबी बातचीत की।
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सीधी की विधायक रीति पाठक और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा से भी मुलाकात हुई।
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सूत्र बताते हैं कि संतोष ने संगठन की कार्यशैली, स्थानीय समीकरण और आगामी चुनावी रणनीतियों पर फीडबैक लिया।
इसके अलावा, उनकी मुलाकात आरएसएस और किसान संघ के पदाधिकारियों से भी हुई, जहां उन्होंने विशेष रूप से उज्जैन सिंहस्थ क्षेत्र में जमीनों के स्थायी अधिग्रहण के मुद्दे पर जानकारी ली।
मिलने पहुंचे कई नेता, लेकिन नहीं हो सकी भेंट
बी.एल. संतोष के दौरे की सूचना मिलने पर कई नेता प्रदेश भाजपा कार्यालय पहुंचे, लेकिन सभी को उनसे मिलने का मौका नहीं मिल पाया।
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आलोट विधायक डॉ. चिंतामणि मालवीय करीब 40 मिनट तक इंतजार करते रहे, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी।
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शहपुरा विधायक ओमप्रकाश धुर्वे स्थानीय मुद्दों के दस्तावेज लेकर पहुंचे थे, मगर वे भी नहीं मिल पाए।
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छिंदवाड़ा सांसद बंटी साहू, शिवपुरी विधायक देवेंद्र जैन, मंत्री दिलीप जायसवाल और पशुपालन मंत्री लखन पटेल भी दफ्तर पहुंचे।
इन असफल मुलाकातों ने इस बात को और पुख्ता किया कि संतोष का दौरा बेहद गोपनीय और चुने हुए नेताओं तक सीमित था।
किसानों का अचानक प्रदर्शन
जब अंदर बंद कमरों में सियासी चर्चा चल रही थी, उसी समय बाहर उज्जैन जिले के करीब 50 किसान भाजपा कार्यालय पहुंच गए। किसान बी.एल. संतोष से मिलने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सुरक्षा कारणों से मुलाकात नहीं हो पाई।
नाराज किसानों ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल से मुलाकात कर अपनी समस्या बताई। हालांकि, बातचीत के बाद भी असंतोष बना रहा और किसानों ने पार्टी कार्यालय के हॉल में ही नारे लगाने शुरू कर दिए।
उनके नारे थे –
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“किसान एकता जिंदाबाद”
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“एमपीआरडीसी मुर्दाबाद”
इस पर भाजपा प्रदेश महामंत्री भगवानदास सबनानी ने आपत्ति जताई और किसानों को संयम बरतने की सलाह दी।
उज्जैन-जावरा ग्रीनफील्ड हाईवे से किसानों की नाराजगी
किसानों का गुस्सा मुख्य रूप से उज्जैन-जावरा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट को लेकर है।
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किसान कहते हैं कि वे सड़क निर्माण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसकी तकनीकी डिजाइन और मुआवजे की शर्तों पर गंभीर आपत्तियां हैं।
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किसान मुकेश धानक के अनुसार, “हमने विधायक, सांसद, कलेक्टर और एमपीआरडीसी तक सब जगह गुहार लगाई, लेकिन समाधान नहीं मिला। अब हम भाजपा कार्यालय आए हैं।”
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किसान जितेंद्र पाटीदार ने कहा, “हम चाहते हैं कि एक्सप्रेसवे 16 फीट ऊंचाई पर न बनाकर जमीन के समतल स्तर पर बनाया जाए, ताकि खेतों और आजीविका पर असर न पड़े।”
किसानों का दावा है कि इस प्रोजेक्ट से 62 गांवों के लोग प्रभावित होंगे। वे चाहते हैं कि सरकार उचित मुआवजा और वैकल्पिक समाधान दे।
सीएम से मिलने की कोशिश, लेकिन नाकाम
किसानों ने बताया कि वे भोपाल इसलिए आए थे ताकि सीधे मुख्यमंत्री मोहन यादव से अपनी बात कह सकें। लेकिन उन्हें समय नहीं मिल पाया।
एक किसान ने कहा,
“सीएम हमारे गृह जिले से हैं, हमें उम्मीद थी कि वे हमारी बात सुनेंगे। लेकिन अब तक हमें उनसे मिलने का मौका नहीं मिला।”
निराश होकर किसानों ने कार्यालय में ही अपनी फोटो खिंचवाने की कोशिश की, जिसे भाजपा पदाधिकारियों ने रोक दिया। इससे किसानों की नाराजगी और बढ़ गई।
नेताओं और किसानों के बीच दूरी
यह पूरा घटनाक्रम भाजपा के लिए एक संदेश है कि नेताओं और किसानों के बीच संवाद की कमी तनाव बढ़ा रही है। किसान अब खुलकर कह रहे हैं कि यदि उनकी समस्याओं का हल नहीं हुआ तो वे बड़े आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।
बी.एल. संतोष का दौरा कितना अहम?
बी.एल. संतोष का यह दौरा लगभग 22 घंटे लंबा रहा। उनके भोपाल प्रवास ने साफ कर दिया कि पार्टी मध्य प्रदेश में संगठन और सरकार दोनों का समीकरण कसने में जुटी है।
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उन्होंने रणनीतिक रूप से सिर्फ चुनिंदा नेताओं से ही चर्चा की।
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यह भी स्पष्ट है कि भाजपा 2028 विधानसभा चुनाव और 2029 लोकसभा चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर चुकी है।
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दूसरी ओर, किसान आंदोलन जैसी चुनौतियाँ पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं।
निष्कर्ष
भोपाल में बी.एल. संतोष का दौरा भाजपा की आंतरिक राजनीति और संगठनात्मक समीकरणों को मजबूत करने की कवायद का हिस्सा था। लेकिन इस दौरान उज्जैन के किसानों का विरोध यह दिखाता है कि जमीनी मुद्दे और विकास परियोजनाएँ भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं।
यदि पार्टी ने किसानों की नाराजगी को समय रहते शांत नहीं किया, तो आने वाले चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है। वहीं, संतोष की बंद कमरों वाली बैठकें यह संकेत देती हैं कि भाजपा अब भी चुनिंदा नेताओं पर फोकस कर रही है, लेकिन जनता और किसानों से सीधा संवाद ही उसका असली इम्तिहान होगा।
