उज्जैन। सनातन धर्म के तीज त्यौहार का महीना अगस्त में अनेक व्रत ऐसे नियमों के हैं जिनमें महिलाओं एवं युवतियों को कठिन साधना के दौर से गुजरना पडता है। गुरूवार को ऊब छठ व्रत भी उनमें से एक है। इस व्रत में महिलाएं एवं युवतियां दिन भर खडे रहकर कठिन साधना करेंगी। इसी माह हरतालिका तीज व्रत भी आने वाला है जिसमें महिलाएं ,युवतियां निर्जला रहकर व्रती रहेंगी।
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद राजेन्द्र गुप्ता बताते हैं कि भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की छठ (षष्ठी तिथि) को ही ऊब छठ कहा जाता है। ऊब छठ को चन्दन षष्ठी, चानन छठ और चंद्र छठ के नाम से भी जाना जाता है। वहीं देश के कई राज्यों में इस दिन को हलषष्ठी के रूप में भी मानते है। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई भगवान बलराम का जन्म हुआ था। और उनका शस्त्र हल था, इसलिए इस दिन को हलषष्ठी भी कहा जाता है। वहीं कई जगह इस दिन को चंदन षष्ठी के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम का जन्म दिवस (चंद्र षष्ठी पर्व) 14 अगस्त को ऊब छठ के रूप में मनाया जाएगा।
ऊब छठ पूजा विधि –
महिलाएं और युवतियां पूरे दिन उपवास रख, शाम को दुबारा नहाती है। फिर नए कपड़े पहन कर मंदिर जा वहां भजन करती हैं। इस दिन कुछ लोग अपने इष्ट के साथ-साथ लक्ष्मी जी और और गणेश जी की भी पूजा करते है।
ऊब छठ में चांद का महत्व-
जिसके बाद वह भगवान को कुमकुम और चन्दन से तिलक कर सिक्का ,फल, फूल , सुपारी अक्षत अर्पित करते है। फिर ऊब छट व्रत और गणेशजी की कथा श्रवण के बाद भी पानी नहीं पी सकते, जब तक चांद न दिख जाए। चांद दिखने के बाद चांद को जल के छींटे देकर कुमकुम, चन्दन, मोली, अक्षत चढ़ाकर भोग अर्पित कर अर्ध्य दिया जाता है।
ऊब छठ नियम-
ऊब छठ के व्रत का नियम है कि जब तक चांद नहीं दिखेगा तब तक महिलाओं को खड़े रहना पड़ता है। व्रती मंदिरों में ठाकुरजी के दर्शन कर पूजा अर्चना करके परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करती हैं और खड़े रहकर पौराणिक कथाओं का श्रवण करती हैं। इसके बाद एक ही जगह खड़े होकर परिक्रमा करके व्रत खोला जाता है। लोग व्रत खोलते समय अपने रिवाज के अनुसार नमक वाला या बिना नमक का खाना खाते है। कथा का श्रवण किया जाता है।
