खुसूर-फुसूर प्रतिनियुक्ति…नवाचार…पड रहा आर्थिक भार

खुसूर-फुसूर

प्रतिनियुक्ति…नवाचार…पड रहा आर्थिक भार

शासन की प्रतिनियुक्ति एक विभाग से दुसरे विभाग में करने के पीछे मूल उद्देश्य नवाचार से संबंधित विभाग को कुछ नया देना है। जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाली संस्था में पिछले तीन दशकों से प्रतिनियुक्ति से कोई लाभ नहीं मिल सका है। नवाचार के फेर में यहां प्रतिनियुक्ति पर आने वालों का वजन उठाते उठाते संस्था कंगाली के कगार पर बैठी हुई है। जिस संस्था में काम करने के लिए कभी लोग उदार बैठे रहते थे आज वहां के हाल यह हैं कि एक के बाद एक निविदा में कोई नहीं आना चाह रहा है। नवाचार के नाम पर प्रतिनियुक्ति ने संस्था में जो चल रहा था उसका भी बंटाढार कर दिया है। नागरिक संस्था को टेक्स देते हैं और उससे सुविधाओं की अपेक्षा करते हैं लेकिन वर्तमान में तो नागरिकों का अधिकांश टेक्स प्रतिनियुक्ति पर आए हुए वजनदारों का वजन उठाने में ही जा रहा है। प्रतिनियुक्ति पर आए वजनदारों को जो सुविधा दी जा रही है उनके मूल विभाग में भी इतनी सुविधा उन्हें नहीं मिल रही थी। प्रतिनियुक्ति पर आए इन वजनदारों के नवाचार की स्थिति यह है कि सामान्य प्रोसेस फाईल ही इनके यहां न्यूनतम 15 दिन तक धूल खाती रहती है। नवाचार करने आए ये वजनदार एक भी नागरिक को तत्काल उसका अधिकार और हक दिलवाने के मामले में एक भी उदाहरण पेश नहीं कर सके हैं। दो दशक पूर्व प्रतिनियुक्ति बनाम नवाचार करने आए वजनदारों के वजन तले दबी संस्था को देखकर बुद्धिजीवियों ने न्यायालय की शरण ली थी । खुसूर-फुसूर है कि प्रतिनियुक्ति पर आए कथित नवाचारी वजनदारी करते हुए तकनीकी के जानकारों को ही तर्क देते रहते हैं जबकि वे इस मामले में कहकरा ही नहीं जानते हैं। इनकी वजह से शहर के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं का अभाव झेलना पड रहा है। प्रदेश से संस्था को मिलने वाला पैसा भी नहीं मिल रहा है और जो मिल रहा है वह भी उंट के मुंह में जीरा और नवाचारियों के वेतन और सुविधा के लिए चींटी के हिसाब में मिल रहा है। ऐसे में प्रतिनियुक्ति के इन नवाचारियों को लेकर धीरे-धीरे अब आक्रोश पनपने लगा है और इन सरकारी प्रतिनियुक्ति पर आए नवाचारियों की कर्मशीलता पर प्रश्न भी खडा होने लगा है।

 

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