खुसूर-फुसूर नाचे कूदे…खीर खाए …जंगल का जीव

खुसूर-फुसूर

नाचे कूदे…खीर खाए …जंगल का जीव

शीर्षक के शब्द जंगल वाले विभाग पर लागू हो रहे हैं। पिछले दिनों वन्य जीवों की एक बडी एजेंसी ने शहर से अपराधियों को पकडा और इनके हवाले किया। अपराधियों को ट्रेक करते-करते महाराष्ट्र की टीम यहां तक आ गई और यहीं सालों से रह रहे अपराधियों को दबोचा और इन कर्णधारों को सौंपा की अब तो कार्रवाई कर दो। बेशर्म हो चुके यहां के इन कर्णधारों को इस पर भी शर्म नहीं आई और पूरे मसले को गिनाने लगे। इनके हाल यह हैं कि हाल ही में जिले के एक भाग में वन्य जीव शेड्यूल एक का जीव मिलने के बाद भी ये पता नहीं लगा सके की वो आया कहां से और कैसे, उसने आने के दौरान जिले में कब कहां क्या खाया। इस मामले के ठीक बाद में महाराष्ट्र की एजेंसी यहां से तस्करों को दबोचती है। इससे भी शंका का दायरा बढ जाता है। खास तो यह है कि एजेंसी जो खाल जब्ती में लेती है वह पूरी है।  तहसील में मरा बिल्ली प्रजाति का बडा जीव भी इन्हीं हालातों में मिला था। अध्ययन से साफ होता है और अब जीवों को मारने के लिए बंदूक,फंदा,करंट जैसे मामले उपयोग नहीं किए जा रहे हैं। तस्कर आधुनिक रूप से जीव हत्या के लिए दवा का उपयोग कर रहे हैं। जिस तरह से एक व्यस्क जानवर की मौत को डिहाईड्रेशन मानकर मामले को रफा दफा कर दिया उससे ही शंका की स्थिति बन रही है। कर्णधारों को जिन मुद्दों को संदिग्ध मानकर पूरे मसले पर जांच करना थी वैसा कुछ नहीं किया गया। खास तो यह है कि वन्यजीवों,उनके अवशेषों,अंगों का मुल्यांकन मुद्रा में नहीं किए जाने को लेकर देश के संस्थानों की और से निर्देश हैं उसके बाद भी इस मामले में क्लास टू अधिकारी ने क्लास की तरह ही हरकतें अंजाम दी हैं। खास तो यह है कि पूरे जिले में आरे का उपयोग हो रहा है। जो कि प्रतिबंधित है। वाहनों में लकडी का परिवहन होते समय हेमर विभाग की और से होना चाहिए जो कि कहीं नहीं दिख रहा है। मशीनों से अर्दलियों के माध्यम से लाभ शुभ का खेल जोर पकड रहा है। हर क्षेत्र में एक मशीन संचालक इनके नाम पर कलेक्शन करने में लगा है। भंडारण की स्थिति का कोई हिसाब नहीं है। छोटे साहब खुद ही आक्षेपित हैं, उनके अर्दली कर्मचारियों के ही उन पर आरोपों की पुष्टि होने पर भी जंगल के विभाग में जंगल जैसा ही सब कुछ चल रहा है। खुसूर-फुसूर है कि जंगल के इस महकमें में अगर सिरे से बाल की खाल उधेडी जाए तो यहां के हाल बेहाल ही मिलेंगे। क्लास टू तो ठीक है पहले के बडे साहब तो विभाग का लेपटाप और सीसीटीवी कैमरा तक ले उडे थे तो ये भी उनके पदचिन्हों पर ही चलेंगे न।

 

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