खुसूर-फुसूर उत्साह के साथ चिंतन का समय

खुसूर-फुसूर

उत्साह के साथ चिंतन का समय

हाल ही में प्रदेश में विद्यार्थियों की परीक्षा के परिणाम सामने आए हैं। दो माह पूर्व हुई परीक्षा के परिणाम इस बार पिछले वर्षों की तुलना में जल्दी आए और इसके लिए पूर्व से ही तैयारी की गई थी। परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी ने भी सख्त नियमों के साथ इसका आयोजन किया और मुल्यांकन के लिए भी एजेंसी ने अपनी सख्ती रखी। परीक्षा परिणाम ने सभी को दंग कर दिया है। जिले में ही जो परिणाम आए उसे देखकर ऐसा लगा कि पिछले एक साल में पूरा महकमा ही सुधर गया और विद्यार्थियों का भविष्य बनाने में लगा रहा। हाईस्कूल का परिणाम 20 फीसदी से अधिक उछाल के साथ दर्ज किया गया और हायर सेकेंडरी का परिणाम करीब 7 फीसदी तक उछला है।इसके साथ ही खास यह भी रहा कि उत्कृष्ट विद्यालयों ने बाजी मारी। जिले में तो निजी विद्यालयों की शिक्षा दान पर उत्कृष्ट ने सवाल खडे करने जैसे हालत परिणामों में दे दिए हैं। इससे एक बात यह भी कहीं जा सकती है कि सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में गुणात्मक सुधार जारी है। खास यह रहा कि इतनी उछाल के बावजूद संभागीय मुख्यालय के मूल जिला की स्थिति संभाग के छोटे –छोटे जिलों से पिछडी हुई रही है। संभाग के छोटे जिलों ने प्रदेश में जो क्रम हासिल किया उनमें संभागीय मुख्यालय का जिला काफी नीचे दिखाई दिया। खुसूर-फुसूर है कि सरकारी स्कूलों के परिणामों ने सभी का उत्साह बढाया है और यह स्वभाविक भी है लेकिन उत्साह के इस दौर में भी चिंतन का सवाल होना भी स्वभाविक है और इसे सकारात्मक भाव से लेते हुए मंथन भी होना ही चाहिए की आखिर ऐसी कौन सी कमी हर वर्ष हो रही है जिसके कारण संभाग के अन्य छोटे जिलों की अपेक्षा मुख्यालय का जिला पिछड रहा है जो कि मूल रूप से नेतृत्वकर्ता जिला है।

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